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दृढ संकल्प-हमारे मन मे कामनाए उठती रहती हैं। उन कामनाओं मे कार्यरूप मे वदलने की क्षमता होती है, इसीलिए उन्हें संकल्प कहा जाता है। समुद्र मे ऊर्मियो की भाति सकल्प हमारे मन में उत्पन्न होते है और विलीन हो जाते है। वे अस्थिर सकल्प होते है। उनसे हमे कोई लाभ प्राप्त नही होता। स्थिर सकल्प कार्य-रूप में परिवर्तित हुए विना विलीन नही होता। वह दीर्घकाल तक टिका रहता है। उसे भावनात्मक रूप देने-बराबर उसकी पुनरावृत्ति करने से वह रूढ हो जाता है। दृढ सकल्प मे कार्य-रूप मे परिणत होने की क्षमता होती है। उसके द्वारा हम मन के स्वभाव को बदल सकते है। बुरे विचारो को छोडने व अच्छे विचारों की आदत डालने मे दृढ सकल्प हमारी बहुत सहायता करता है।
एकाग्रसन्निवेशन-एकाग्रता मन की विरोधावस्था नहीं है। यह उसकी किसी एक विषय मे निरोधावस्था है। अनेक मार्गों में जाते हुए प्रवाह को एक मार्ग मे मोड देना है। नदी का प्रवाह जव अनेक मार्गो मे वहता है, तब वह क्षीण हो जाता है। एक प्रवाह मे जो शक्ति होती है, वह विभक्त प्रवाहो मे नही हो सकती। सूर्य की बिखरी रश्मियो मे वह शक्ति नही होती, जो केन्द्रित किरणो मे होती है। मन का प्रवाह भी एक आलम्बन की ओर निरतर वहता है तब उसमे अकल्पित शक्ति आ जाती है। एकाग्रता के क्षेत्र मे मन की शान्ति और स्थिरता का अर्थ है चिन्तन-प्रवाह को एक ही दिशा में प्रवाहित करना। मन के एकाग्र प्रवाह की अनेक पद्धतिया है। उनमे से कुछ पद्धतियो को यहा प्रस्तुत किया जाता है
१. द्रष्टा की स्थिति-मन की चचलता को रोकने का यत्न मत कीजिए। वह जहा जैसे जाता है, उसे देखते रहिए। उस समय दृश्य या ज्ञेय मन को ही बना लीजिए। इस प्रकार तटस्थ द्रष्टा के रूप मे जागरूक रहकर आप मन का अध्ययन ही नही कर पाएगे, किन्तु उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेगे।
२. विकल्पों की उपेक्षा-आपके मन मे जो विकल्प उठते है, उनकी उपेक्षा कीजिए। जो प्रश्न उठते है, उनके उत्तर मत दीजिए। जैसे प्रश्न करने वाला व्यक्ति उपेक्षा पाकर (उत्तर न पाकर) मौन हो जाता है, वैसे ही मन भी उपेक्षा पाकर (प्रश्नो का उत्तर न पाकर) शान्त हो जाता है।
२४ / मनोनुशासनम्