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७. भाव-क्रिया
अपनी दैनिक प्रवृत्तियो मे भाव-क्रिया का अभ्यास करे-वर्तमान क्रिया में तन्मय रहने का अभ्यास करें। जैसे-चलते समय केवल चलने का ही अनुभव हो, खाते समय केवल खाने का, इत्यादि। जो क्रिया करे, उसकी स्मृति बनी रहे।
तृतीय भूमिका
१. प्रेक्षा-ध्यान (क) श्वास-प्रेक्षा-प्रेक्षाध्यान सूक्ष्म श्वास के साथ-कायोत्सर्ग मुद्रा मे,
सुखासन या पद्मासन मे स्थित हो सूक्ष्म श्वास के साथ श्वास-प्रेक्षा का अभ्यास करें।
समय-दस मिनट से एक घंटा तक। (ख) सहज प्रकम्पन-प्रेक्षा-सिर से लेकर पैर तक प्रत्येक अवयव मे
होने वाले सहज प्रकम्पनो का निरीक्षण करे।
समय-पाच मिनट से एक घंटा तक। (ग) सामायिक-ज्ञाता और द्रष्टा के रूप मे इन्द्रिय-विषयो
की सप्रेक्षा। समय-पाच मिनट से एक घंटा तक।
१ प्रेक्षा-ध्यान की द्वितीय भूमिका के साधक के लिए निम्नलिखित चर्या आदि का
पालन आवश्यक होगा१. आहार-संयम-प्रथम भूमिकावत्। २ वाणी-संयम-प्रतिदिन तीन घंटा मौन। ३. निद्रा-संयम-प्रथम भूमिकावत्। ४ व्रत-साधना-अणुव्रत या व्रत-दीक्षा। ५ स्वाध्याय ६. आसन-प्रयोग-पद्मासन (मूलवध सहित), वद्धपद्मासन (समय-पाच मिनट),
सिद्धासन, जालन्धरवन्ध, कायोत्सर्गासन (समय-टस मिनट)।
मनोनुशासनम् / १६३