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________________ मोह के कारण होता है। पर शरीरशास्त्र की भाषा मे कर्म का स्थान नही है। उसके अनुसार कामवाहिनी नाडियो मे रक्त का सचरण होने से अब्रह्मचर्य की भावना उभरती है। उसका सचरण नहीं होता तो वह भावना नही उभरती। सचरण कम होने से वह भावना कम उभरती है और सचरण अधिक होने से वह भावना अधिक उभरती है। इस सदर्भ मे हम उस तथ्य की ओर सकेत कर सकते है कि ब्रह्मचारी के लिए गरिष्ठ या दर्पक आहार का निषेध क्यो किया गया ? अब्रह्मचर्य एक आवेग है। हर आवेग पर मनुष्य अपनी नियत्रणशक्ति से विजय पाता है। मन की नियत्रण-शक्ति का विकास ब्रह्मचर्य का प्रमुख उपाय है। पर यह प्रथम उपाय नहीं है। प्रथम है-ब्रह्मचर्य के प्रति गाढ श्रद्धा होना । दूसरा है-वीर्य या रक्त के प्रवाह को मोडने की साधना। इसमे ब्रह्मचर्य जितना सहज हो सकता है, उतना नियंत्रण शक्ति से नही। काम-वासना मस्तिष्क के पिछले भाग मे प्रारम्भ होती है, इसलिए जैसे ही वह उभरे, वैसे ही उस स्थान मे मन को एकाग्र कर कोई शुभ-सकल्प किया जाए, जिससे वह उभार शान्त हो जाए। पेट मे मल, मूत्र और वायु का दबाव बढ़ने से काम-वाहिनी नाडिया उत्तेजित होती है। खान-पान और मल-शुद्धि मे सजग रहना ब्रह्मचर्य की बहुत वडी शर्त है। वायु विकार न बढे इस ओर ध्यान देना भी बहुत आवश्यक है। ___ काम-जनक अवयवो के स्पर्श से भी वासना बढ़ सकती है। इन सारी वातो का ब्रह्मचर्य के परिपार्श्व मे बहुत महत्त्व है, पर इन सबसे जिसका अधिक महत्त्व है, वह है वीर्य या रक्त-प्रवाह को मोडने की प्रक्रिया। उसकी कुछ विधिया इस प्रकार है ऊर्ध्वाकर्षण (क) सिद्धासन मे बैठिए। श्वास का रेचन कीजिए-वाहर निकालिए। वाह्य कुम्भक कीजिए-श्वास को बाहर रोके हुए रहिए। इस स्थिति मे सकल्प कीजिए कि वीर्य रक्त के साथ मिलकर समूचे शरीर मे घूम रहा है। उसका प्रवाह ऊपर की ओर हो रहा है। १४६ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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