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________________ पांचवां प्रकरण १ प्राणापान-समानोदान-व्यानाः पंच वायवः॥ २ नासाग्र-हृदय-नाभि-पादांगुष्ठान्तगोचरो नीलवर्णः प्राणः॥ पृष्ठ-पृष्ठान्त-पाणिगः श्यामवर्णः अपानः॥ ४ सर्वसन्धि-हृदय-नाभिगः श्वेतवर्णः समानः॥ हृदय-कण्ठ-तालु-शिरोन्तरगो रक्तवर्णः उदानः॥ ६ सर्वत्वग्वृत्तिको मेघधनुस्तुल्यवर्णो व्यानः॥ १ प्रधानत वायु के पाच प्रकार है १ प्राण २ अपान ३ समान ४ उदान ५ व्यान नासिका के अग्रभाग, हृदय, नाभि और पैरो के अगूठे तक व्याप्त रहने वाला वायु प्राण कहलाता है। इसका वर्ण नील होता है। पीठ, पीठ के अन्त्य भाग और पाणियो (एडियों) मे परिव्याप्त वायु अपान कहलाता है। इसका वर्ण श्याम होता है। ४ सारे सन्धि-भागो, हृदय तथा नाभि मे विचरने वाला वायु समान कहलाता है। इसका वर्ण श्वेत होता है। हृदय, कण्ठ, तालु और सिर मे विचरने वाला वायु उदान कहलाता है। इसका वर्ण रक्त होता है। ६ त्वगमात्र मे विचरने वाला वायु व्यान कहलाता है। इसका वर्ण इन्द्रधनुपी होता है। १२२ / मनोनुशासनम् m er
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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