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________________ तत्परस्यौजस स्थान तत्र चैतन्यसग्रह. -चरक, सूत्रस्थान ३०/७ विकल्प-शून्यता की प्राप्ति के लिए हदय-चक्र पर ध्यान देना और उसकी गहराई में उतरना बहुत ही उपयोगी है। हदय-चक्र पर ध्यान करने से ग्रथि-भेद हो जाता है। उससे आत्म-साक्षात्कार सुलभ हो जाता है। ___ चक्रो पर ध्यान करने से ज्ञानतंतु जागृत होते है, किन्तु उन्हें जागृत करने का एकमात्र यही उपाय नहीं है। सयम की प्रखर साधना और प्रबल वैराग्य हो तो चक्रो पर ध्यान किए बिना ही वे जागृत हो जाते है। प्रेक्षा का अर्थ है-प्रकृष्ट या गहरे मे उतरकर देखना। हम बाहर की ओर देखते ही है। हमारी इन्द्रियां और मन, इन सवकी गति वहिर्मुखी' है। प्रेक्षा इसका विपरीत क्रम है। इसके द्वारा इन्द्रिया और मन अन्तर्मुखी बनते है। हमारे शरीर मे रासायनिक परिवर्तन होते रहते है। उसके कई हेतु है, जैसे-सर्दी, गर्मी आदि वाहरी वातावरण, भोजन, वर्तमान चित्तपर्याय और कर्म का उदय। जव हम प्रयत्नपूर्वक कर्म का शीघ्र विपाक कर उसे उदय मे लाते है तब और अधिक रासायनिक परिवर्तन होता है। इस रासायनिक परिवर्तन को प्रेक्षा के द्वारा देखा जा सकता है। प्रेक्षा करते-करते मन सूक्ष्म और सवेदनशील हो जाता है और समूचे शरीर के ज्ञान तन्तु जागृत हो जाते है। इसलिए शरीर मे होने वाले रासायनिक परिवर्तनो को सहज ही जाना जा सकता है। प्रेक्षा के विशेष प्रयोग मन को सिर से पाव तक ले जाना, शरीर के प्रत्येक अवयव मे चेतना को प्रवाहित करना और साथ-साथ वेदना को देखना और उसके प्रति तटस्थ रहना प्रेक्षा का पहला चरण है। इसके बाद अर्धचेतन और अवचेतन मन के स्तर पर होने वाली प्रतिक्रियाओ और कर्म विपाको को देखना, यह प्रेक्षा का अग्रिम चरण है। देखना और तटस्थ रहना ये दोनो मिलकर प्रज्ञा को जागृत करते है। उसके जागृत होने पर मोह-चक्र टूट जाता है। १०६ / मनोनुशासनम्
SR No.010300
Book TitleManonushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages237
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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