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कषाय
क्रोध, अभिमान, माया और लोभ - इन चारो को एक शब्द मे कपाय कहा जाता है । इनके द्वारा मन रजित होता है - अपनी सहज साम्यपूर्ण स्थिति को खोकर इनके रंग मे रंग जाता है। इसलिए इन्हे कपाय कहना सर्वथा उपयुक्त है। कपाय के द्वारा मानवीय गुण विनष्ट
होते है । जैसे
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१. क्रोध से प्रेम
२. अभिमान से विनय ३ माया से मैत्री
४. लोभ से सर्वगुण ।
इन्हे बल प्रयोग से नही मिटाया जा सकता। इन पर विजय पाने के लिए प्रतिपक्ष भावना का आलम्बन लेना उपयोगी होता है । उपशम (शान्ति) की भावना को पुष्ट करने - उपशम के विचार को वार-बार दोहराने से क्रोध सहज ही नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार मृदुता की भावना को पुष्ट करने से अभिमान, ऋजुता की भावना को पुष्ट करने से माया और संतोष की भावना को पुष्ट करने से लोभ सहज ही विनष्ट हो जाता है।
भावना का अभ्यास निम्न निर्दिष्ट प्रक्रिया से करना इष्ट-सिद्धि मे अधिक सहायक हो सकता है। साधक पद्मासन आदि किसी सुविधाजनक आसन पर बैठ जाए। पहले श्वास को शिथिल करे । फिर मन को शिथिल करे। पाच मिनट तक उन्हें शिथिल करने के लिए सूचना देता जाए। वे जब शिथिल हो जाएं तव उपशम आदि पर मन को एकाग्र करे । इस प्रकार निरन्तर आधा घटा तक अभ्यास करने से पुराने सस्कार विलीन हो जाते है और नये सस्कारो का निर्माण होता है । इस प्रकार का अभ्यास वैयक्तिक रूप मे भी किया जा सकता है और सामूहिक रूप मे भी कराया जा सकता है ।
२२. शरीर- गण - उपधि-भक्तपान कषायाणां विसर्जनं व्युत्सर्गः ॥
२३. ध्यानाय शरीर - व्युत्सर्गः ॥ २४. विशिष्टसाधनायै गण- व्युत्सर्गः ॥ २५. लाघवाय उपधि-व्युत्सर्गः ॥
मनोनुशासनम् / ८७