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भव. । ५
कर क्षुधारोग विनाश स्वामी, सुथिर कीजे रीतिसो ॐ ह्री प्राचार्योपाध्याय सर्व साधुगुरुभ्य नैवेद्य नि० ||५|| दीपक, उदोत सजीत जगमग सुगुरु पद पूजो सदा । तमनाश ज्ञान उजास स्वामी, मोहि मोह न हो कदा | भव. | ॐ ह्री प्राचार्योपाध्याय सर्वसाघुगुरुभ्य दीप नि० ||६||
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बहु अगर प्रादि सुगन्ध खेऊ सुगुरग पद, पद्महि खरे ।
दुख पुंजकाठ जलाय स्वामी गुरण श्रखय चितमे घरे |भव|| ॐ ह्री प्राचार्योपाध्याय सर्वसाघुगुरुम्योऽष्टकर्मदहनाय धूप नि० ॥७॥ भर थार पूरंग बदाम बहुविधि, सुगुरुक्रम श्रागे घरों । मंगल महाफल करो स्वामी, जोर कर विनती करौं । भव. ॐ ह्री प्राचार्योपाध्याय सर्व साधुगुरुभ्य मोक्षफलप्राप्तये फल नि० । जल गंध प्रक्षत फूल नेवज, दीप धूप फलावली । 'द्यान' सुगुरुपद देह स्वामी, हमह तार उतावली । भव ॥ ॐ ह्री आचार्योपाध्याय सर्वं साघुगुरुभ्योऽनर्घ्य पदप्राप्तये श्रध्यं नि० ।
जयमाला
दोहा -- कनककामिनी विषयवश, दीसं सब संसार । त्यागी वैरागी महा, साधु सुगुरु भंडार ॥१॥ तीन घाटि नवकोड सब, बन्दों शीश नवाय ।
गुन तिन अट्ठाईस लौं, कहूँ भारती गाय ॥२॥ एक दया पालै मुनिराजा, रागद्वेष द्वं हरन परं । तीनो लोक प्रकट सब देखे, चारों प्राराधन निकरं ॥ पंच महाव्रत दुद्धर घारे, छहों दर्व जानें सुहित । सातभग-वानी मन लावे, पावे श्राठ रिद्ध उचित ।।