________________
। ७७
नेवज विविध प्रकार, क्षुधा हरै थिरता करे।
सम्यकदर्शनसार, आठ अङ्ग पूजौं सदा ॥५॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय नैवेद्य नि• ।
दीप-ज्योति तमहार, घट पट परकाशै महा ।
सम्यग्दर्शनसार, पाठ अङ्ग पूजौं सदा ॥६॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय दीप नि० ।
धूप घ्राणसुखकार, रोग विघन जडता हरे ।
सम्यग्दर्शनसार, पाठ अङ्ग पूजौं सदा ॥७॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय धूप निर्व०।।
श्रीफल प्रादि विथार, निहचै सुर शिवफल करै।
सम्यग्दर्शनसार पाठ अङ्ग पूजौं सदा ॥८॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय फल नि० ।
जल गन्धाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु ।
सम्यग्दर्शनसार, पाठ अङ्ग पूजौं सदा ॥९॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय अध्यं नि० ।
जयमाला दोहा-आप माप निहचे लख, तत्त्वप्रीति व्योहार । रहित दोष पच्चीस हैं, सहित अष्टगुण सार ।।१०॥
चौपाई मिश्रित गीता छन्द । सम्यग्दर्शन रतन गहीजै, जिन-वच में सन्देह न कीजै । इह भव विभव-चाह दुखदानी, पर-भव भोग चहे मत प्रानी। प्राणी गिलान न करि पशुचि लखि, धरम गुरु प्रभु परखिये। परदोष ढकिये धरम डिगते को, सुथिर कर हरखिये ।