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दोहा-एक स्वरूप प्रकाश निज, वचन कहो नहिं जाय ।
तीन भेद व्योहार सब 'द्यानत' को सुखदाय ॥७॥ ॐ ह्री सम्यग्रत्नत्रयाय महायं निवंपामोति स्वाहा ।
दर्शन पूजा दोहा-सिद्ध प्रष्टगुनमय प्रकट, मुक्तजीव सोपान ।
ज्ञानचरित्र जिहं विन प्रफल, सम्यग्दर्श प्रधान ॥१॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शन । अत्र अवतर अवतर, सवौषट् । ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शन | अत्र तिष्ठ तिष्ठ, ठ ठ । ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शन । अत्र मम सन्निहितो भव भव, वषट् । सोरठा-नीर सुगन्ध अपार, तृषा हर मल छय करें।
सम्यक् दर्शन सार पाठ पग पूर्जी सदा ॥१॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय जलं निर्व।
जल केसर धनसार, ताप हर शीतल करें।
सम्यक् दर्शन सार, आठ अङ्ग पूर्जी सदा ॥२॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय चन्दन निर्व० ।
अछत अनूप निहार, दारिद नाशै सुख भरे ।
सम्यक् दर्शन सार, पाठ अङ्ग पूर्जी सदा ॥२॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय अक्षतान् निर्व।
अछत अनूप निहार, दारिद नाश सुख भरं ।
सम्यक्दर्शनसार, पाठ अङ्ग पूर्जी सदा ॥३॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय अतिान् निर्व०।
पहुप सुवास उदार, खेद हर 'मन शुचि करै।
सम्यक्दर्शनसार, पाठ अङ्ग पूजौं सदा ॥४॥ ॐ ह्री अष्टागसम्यग्दर्शनाय पुष्पं निर्व.।