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चौपाई मिश्रित गीता छन्द उत्तम छिपा गहो रे भाई, इहभव जस परभव सुखदाई। गाली सुनि मन सेद न प्रानो, गुनको प्रोगुन कहै अयानो ।।
कहि है प्रयानो वस्तु छोने, बांध मार बहुविधि करे। घरत निकार तन विदार, वर जोन तहां घर ।। ते करम पूरय किये खोटे, सह पयों नहिं जीयरा ।
अतिक्रोध प्रगनि बुझाय प्रानी, साम्य जल ले सीयरा ॥ ॐ ह्री उत्तमक्षमाधर्माङ्गाय मध्य निवंपामीति स्वाहा ॥२॥
मान महाविषरूप, करहि नीचगति जगत मे ।
कोमल सुधा अनूप, सुख पावै प्राणी सदा ।। उत्तम मार्दवगुन मन माना, मान करनको फोन ठिकाना । बस्यो निगोदमाहित आया, दमरी स्कन भाग विकाया ।।
रूकन बिकाया भाग वशत, देव इकइन्द्री भया । उत्तम मुग्रा चाढाल हुप्रा, भूप कीडो मे गया । जीतन-यौवन-धन गुमान, कहा करे जल-वुदबुदा।
करि विनय बहगुन बडे जनकी, ज्ञान का पावै उदा ।। ॐ ही उत्तममार्दवधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्वपापीति म्वाहा ॥४॥
कपट न कीजै कोय, चोरन के पुर ना बसे ।
सरल सुभावी होय, ताके घर बहु सम्पदा ॥३॥ उत्तम प्रार्जव रीति बखानी, रञ्चक दगा बहुत दुखदानी। मनमे होय सो वचन उचरिये, वचन होय सो तनसो करिये ।।
करिये सरल तिहुँ जोग, अपने देख निरमल पारसी।