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________________ अथ जयमाला । छन्द विभगी बन्दूं ऋषिराजा, धर्मजहाजा, निजपरकाजा, करत भले । करणा के धारी, गगन-विहारी, दुख-अपहारी भरम दले ।। काटत जमफंदा, भविजन-वृन्दा, करत अनदा चरणन मे। जो पूजे घ्यावे मगल गावै, फेर न प्रावै भव वन मे ॥१॥ छन्द पद्धरि जय श्रीमनु मुनिराजा महंत, त्रस थावर की रक्षा करंत । जय मिथ्यातम नाशक पतग, करुणारसपूरित अङ्ग अङ्ग।। जय श्रीस्वरमनु अकलकल्प, पद सेव करत नित अमर भूप। जय पंच अक्ष जीते महान, तप तपत देह कंचनसमान ।।३।। जय निचय सप्त तत्त्वार्थ भास तप-रमातनो तन मे प्रकाश । जय विषयरोध सबोध भान, परगतिके नाशक अचल ध्यान ।४ जय जयहिं सर्वसुन्दर दयाल,लखि इन्द्रजालवत जगत-जाल । जय तृष्णाहारी रमण राम, जिन परगतिमे पायो विराम ।५ जय आनदधन कल्याणरूप, कल्याण करत सबको अनूप । जय मद-नाशन जयवान देव, निरमद विरचित सब करत सेव जय जयहि विनयलालस अमान, सब शत्रु मित्र जानत समान जय कृशितकाय तपके प्रभाव, छवि-छटा उडति प्रानददाय ७ जयमित्र सकल जगके सुमित्र, अनगिनत अघम कीने पवित्र । जय चन्द्रवदन राजोव-नैन, कबहूँ विकथा बोलत न बैन ।। नय सातो मुनिवर एक संग, नित गगन गमन करते अभंग । प्राये मयुरापुर नझार, तहँ मरीरोगको प्रति प्रचार ।।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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