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जननाला ( दोहा ) नमो सिद्ध परमात्मा, अद्भुत परम रमाल । तिन गुरग महिमा अगम है सरम रची जयमाल ।
परिछन्द जय जय श्री मिन प्रणाम, जय शिव मुखमागर के मुयान । जय वलिबलि जात सुरेश जान, जय पूजत नन मन तान। जय क्षायिक्गुण सम्यक्त्व लोन, जय केवलजान सुगुरए नवीन। जय लोकालोक प्रकाशमान, जय केवल अतिशय हिय प्रान ॥ जय सर्व तत्व दरसे महान सो दर्शन गुण तोजो महान । जय वीर्य अनन्तो है अपार, नाकी पटतर दूजो न मार॥ जय सूक्षमता गुण हिये धार, मब नेय लख्यो एकह नुवार । इक सिद्ध मे सिद्ध अनन्त जान, अपनी अपनी सत्ता प्रमाण ।। अवगाहन गुण अतिशय विशाल तिनके पक्ष्वन्दे नमितभाल । कछु घाटि न वाधि कहे प्रमाण, गुरु अगुल्लघू धारे महान ॥ जय बाधा रहित विराजमान, सो अव्यावाघ को वस्खान । ये वसु गुण हैं व्यवहार सन्त, निश्चय जिनवर भाषे अनन्त ॥ जय सिद्धनके गुण कहे गाय, इन गुणकरि शोभित है जिनाय । तिनको भविजन मन-वचन-फाय, पूजत वसुविधि अतिहर्षलाया सुरपति फरणपति चक्रीमहान, वलि हरि प्रतिहार मन्मथ सुजान गणपति मुनिपति मिल घरतध्यान,जयसिद्धशिरोमरिगजगप्रधान सोरठा-ऐसे सिद्ध महान, तिव गुण महिमा अगम है ।
वरगन करयो बखान, तुच्छ वुद्धि "कविलाल"जू ॥