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नमो पिसाप निधारमेलियो समागंगान । रोपफ को ज्योति जगाय, सिद्धन को पूनो। फरि पारति मन्मुपजाय, निमल पट जो।। प पाटि न याधि प्रमाण, गुगलघु गुरगरायो।
मसीए नमाबत शान, तुम गुरग मुग्ल भाल्यो । होमम्मे मिलान किया नोगिमागमाय दी। पर धूप सुटायघि नाय, दयिघि गन्ध परं । बस कर्म जन्नापत ताप, मानो नत्य परं ।। इक मिल में मिड अनन्त, सत्ता मय पार्य। यह प्रवगाहन गुरण सन्त, सिद्धन के पाय ।। ही नमो निमामिल किन्यो पप्टमायानाय पूपम् । ले फम उत्कृष्ट महान, सिद्धन को पूजों। लहि मोक्ष परम गुगा धाम, प्रभुमम नहि दूजी । यह गुण थापफरि होन, बाघा नाश भई । मुम्ब प्रयावाघ सुचीन, शिव सुन्तरि तुमई॥ ही पगो गिदाण गिदपरमेष्ठिन्यो गोक्षफनप्राप्नये फलम् । जल फल भरि कंचन थाल, घरचत कर जोरी। प्रन सुनिये दोनदयाल, यिनती है मोरी ॥ हो गमो गिद्धाण गिद्धपरमेष्टिम्यो अनध्यपदप्राप्तये प्रध्यम् । कर्मादिक दुष्ट महान, इनको दूर करो । ' तुम सिद्ध सदा सुखदान, भव भव दुःव हरो ।