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अक्षुधा अतृषा अकषायक हैं, सब सिद्ध नमों सुखदायक हैं ।। असम अनमं प्रतम लहिय, अगमं सुगमं सुखम गहियं । जमराज की चोट बचायक हैं, सब सिद्ध नमो सुखदायक हैं।। निरधाम मुघाम अकाम युतं, अविहार प्रहार निहार च्युत । भव नाशन तीक्षण सायक हैं, सव सिद्ध नमो सखदायक हैं।। निरवर्ग प्रकर्ण अर्ण नुतं, अगतं प्रमतं अक्षत परत । प्रति उत्तम भाव सुपायक हैं, सब सिद्ध नर्मों सुखदायक है ।। निररग असंग अभगसदा, अतय अजयं अचयं सुखदा । अमदं प्रगद गुण छायक हैं, सव सिद्ध नमो सुखदायक हैं । अविषाद अनाद अवाद परं, भगवन्त अनन्त महन्त तर तुम ध्येय महा मुनि घ्यायक हैं, सव सिद्धनमो सुखदायक हैं। निरनेह प्रदेह अगेह सुखी, निरमोह अकोह प्रलोह तुषो । तिहुँ लोकके नायक पायक हैं, सव सिद्ध नमों सुखदायक है । पन्द्रह से भाग महान वसं, नवलाख के भाग जघन्य लसै। तन वातके अन्त सहायक हैं, सव सिद्ध नमों सुखदायक हैं । सोरठा-वह विधि नाम बखान, परमेश्वर सबही भजे ।।
ज्यों का त्यों सरधान, "द्यानत" सेवै ते बड़े ॥१६॥
___ॐ ह्री सिद्धपरमेष्ठिम्यो महायं । अविनाशी अविकार परम रस धाम हो,
समाधान सर्वज्ञ सहज अभिराम हो । शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अनादि अनन्त हो,
जगन शिरोमरिण सिद्ध सदा जयवन्त हो ॥१॥