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देज धूप रसाल, मम निकाल बन जाल ते ॥ धूपं ।।७।। अन्तराय दुष्पफार, तुम प्रनन्त घिरता लिये। पूजफर परमार, विधन टार शिय फल पारो फला।।। हम मे पाठों दोग, भी परघको सिद्धजी। दो यह गुण मोक्ष, पर जोरे 'चानन" कह ॥प्रया
मारती दोहा-पाठ करम इट बन्ध मो, नम निव संध्यो जहान । बन्ध रहित यमुगुग सहित, नमो मित भगवान ।।
मोटर सुख सम्पपा ६शंन ज्ञान पर, बनना गुपना लघु वाघ हर । अवगाह पमूरति नाया है, यसिन नमो सय वायफ हैं। अमलं अनल प्रतुल घटल सनन अमन प्रयच अपुल । मनर अमर जग जायफ है, सब मि नमो सुख वायफ है ।। निरभोग स्वभोग प्ररोग पर, निरयोग प्रसोग वियोगहरं । प्ररस स्वरसं दुग्य धाया है, सब शिक्ष नमो सुखदायक हैं । मव कर्म फलक घटक अज, नरनाथ सुरेश समूह जज । मुनि ध्यावत सज्जन दायक है म सिह नमो मुख दायफा है ।। प्रविरुद्ध विशुद्ध प्रयुद्ध मय, सब जानत लोक प्रलोक चयं । परमं घमं शिव लायक हैं, सब मिद नमो सुखदायक हैं। निरवन्ध प्रवन्ध अगध पर, निरभय निरखय निरनय परं। निस्प निरूप प्रकायफ हैं, सब सिद्धनमो सुखदायक हैं ।। निरभेद अखेद प्रछेद गहा, निरद्वन्तु सुखद छन्द महा ।