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१०. सूक्षम साम्पराय छदमस्थ, द्वादश गुनथाने मुनिवेद । छदमस्थ वीतराग को भेद, श्रुतमे ऐसो भाषो धीर ।।१६।। ११.जिनसज्ञा तेरमगुनथान, इनके ग्यारह नाहिं निदान । १२ छटे सातवें अव्ये मान, और नवममे सरव सु जान ।१७ १३. ज्ञानावर्णी कर्म सुभाय, प्रज्ञा अरु प्रज्ञान कहाय । १४. अन्तराय अरु दर्शनमोह, होय प्रलाभ प्रदर्शन दोह।१८।
छन्द विजया १५चारित्रमोह उदयतै लखौ,नगनत्व अरति अरु स्त्री निषध्या याचना करकस वचन कहो,परशंसा प्रस्तुति सात सु हृद्या । १६. वेदनि कर्म उदयते गिनो, सब ग्यारह शेष परीष बताई। १७एकसमय इक जीव विषैइक,प्रादि उनीश परीषह जताई१६ १८.सामायिक व्रत त्रिकाल सुनो,उत्कृष्टि घडीछह २ सु कहाई सब जीवविष सम भाव करें,तजि प्रारति रौद्र सु भाव लहाई। गुणमूल अट्ठाइस माहिं लगौ,कोउ दोषसु ताहि उथापहि ज्ञानी छेदोपस्थापन बाम कहो,लख सूत्र विचारसु या विध ठानी२० हिसादिक त्यागमे निर्मलता परिहार विशुद्धि नाम कहायो । सूक्षम साम्पराय कहु ताको भेद सु सूक्षम लोभ लहायो । यथाख्यात चारित्र सुनो सो प्रातम सोई सु निरमल थायो । या विध पाच प्रकार लखौ शुभ चारित नामसु सूत्रमे गायो२१ १६.उपवासी अल्प अहारी है इक दो घर गिन पाहार लहावं। अनशन अवमौदर्य कहो अरु व्रतपरिसख्या नाम कहावै । छौडै रस परित्यागी है घर सूनो गुफा निरजन वनवासा ।