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६ कर्कश त्याग वचन बध बन्ध, उत्तम क्षमा सु है गुणवय ४ कोमलता मार्दव को नाम, जान सरलता श्रार्जव धाम । सत्य वचन जग मे विख्यात, शौच त्याग परवस्तु कहाल |५| संयम रक्षा है षटकाय, इन्द्री पांच निरोध कराय । अनशनादि तप बारह सार, चार दान घनत्याग निहार |६| प्राकिंचन निरपरिग्रह वीर, ब्रह्मचर्यं मैथुन तनि घोर । यह विधि दशविध धर्म निहार, कही सूत्रमे सव निरधार |७| ७ छिनभर सो प्रनित बखान, श्रशरण कोड शरण नहि जान भ्रमण चतुर्गति है ससार, सुख दुख भोगत एक निहार ८ जीव अन्य अन्यत्व विचार, वपु प्रशौच पुनि हे निम्सार । श्रागम कर्म सु प्रासव जान, कर्म रुके पर संवर मान ॥६॥ एकदेश फरमनि क्षय होय, निरजर नाम कहावे सोय । लोकविचार सु लोकाकार, दुर्लभ ज्ञान जान मन धार ॥१० तीनरतन दशधर्म स्वभाव, द्वादशानुप्रेक्षा मन लाव | ८ मोक्षमार्गंत च्युत नहि होय । निर्जर कर्म करे दृढ सोय ११ वाईस परीषह इह विध जान, 8 क्षुधा तृषा प्रद शीत बखान उष्ण और मच्छर उपसर्ग, नगन अरति ग्रह इस्त्री वर्ग १२ गमनासन शय्या परधान, वच कठोर वध बन्धन जान । जाच प्रलाभ रोग सु निहार, तृरण कंटक इस्पर्श विचार | १३ | वह मैलो मन मलिन शरीर, श्रादर और प्रनादर वीर । बहु तप कियो ज्ञान नहि भयो, ऐसे ही दर्शन नहि थयो ।१४ इनको विकलप मन नहि लहैं, सो बाईस परीषह सहे ।