________________
( १८३)
२५ परगुण ढोकै निदा कर, अपनो प्रौगुन चित नही धरै अपनी थुति प्राप ही करें, नीचगोत्र आषव अनुसरै।। २६निज निंदा पर प्रस्तुति जान,अपने गुण प्राछादान मान पर प्रोगुण प्रगटावे नाहि, पुनि उत्तमगुण प्रगट कराहि । अचगोत्र को प्राषव नान, ऐसो सूत्रमाहि व्याख्यान ।२०। सोरठा-२७ धर्म कार्य के माहि, विधन कर सके नहीं।
प्राश्रय प्रशुभ लहाह, अन्तराय दुखदाय को ।२१॥ दोहा-तत्त्वारथ यह सूत्र है, मोक्षशास्त्र को मूल । छटाध्याय पूरण भयो मिथ्यामत को शूल ।२२।
॥ इति पष्ठोध्याय ।।
चौपई १ हिंसा अनिरत चोरी जान, अब्रह्म और परिग्रह मान । इन पांचोसे रहित जु होय, पंच विरत तसुनाम सु जोय ।। २ देशत्याग सो अणुव्रत जान, त्याग महावत सरव निधान । ३ इन वतनकी इस्थिति कार, भावन पांच पाच निरधारा२ ४ मन अरु वचन गुप्ति सुखकार, देख चले अरु घर निहार । खान पान विधि निरख करेय, वत्त अहिंसा पंच गिनेय ।३। ५ क्रोष लोभ भय हास्य विहाय, पुनि विचार बोल सुखवाय हित मितकारी वचन सुहाय, सत्य भावना पंच गिनाय ।। ६ सूनोगृह अरु ऊजर ठाम, वास तहां को जान निकाम । साधर्मी सो धर्म मझार, कर विवाद कदापि न जार । रोक टोक नहीं कर सुजान, परोपरोधाकरण सु मान ।।