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(१६७) तीन भुवनमें महत पुनि, प्ररहन्त ईश्वर जानियो । ये प्रशस्त पुनि मान्य हैं पुरष्टि पहिचालियो ॥१॥
छन्द विजया मोक्ष को राह बतावत जे अरु, कर्म पहाड करें चकचरा । विश्व सुतत्त्वके ज्ञायक हैं ताहि लब्धिके हेत नमो परपूरा ।। १. सम्यक्दशन झानदरिन कहे एही मारग मोक्षके सूरा। २. सत्त्वके पर्व करो सरपान सु सम्यग्दरशन नाम जहूराास ३. होत स्वभाव निसर्गज सम्यक गुरुउपदेश सु अधिगम ताई ४. जीव मजीव र मानव बंष सु संवर निर्जर मोक्ष जताई। जेई हैं तत्व सुतत्व भले इनको सस्था श्रुत सात कहाई ।। ५. नामस्थापन द्रव्य सुभाक्त तत्व सु संभवता सु लहाई।। ६. नय परिमारण के भेद सुजानन औरहु कारण जान सुजानो ७.निरदेश स्वामित साधन जान अधार र इस्थिति भेद विधानो ८.सत संख्या छिति परसन काल रु अन्तर भाव प्रल्प बहु मानो ६.मति श्रुति अवषिज्ञान मनपरजय केवलज्ञान सुपांच बखानोट १०.एही प्रमाण कहे श्रुतमे ११.पहिले दो शान परोक्ष बताए । १२.शेष प्रतक्ष सु तीन रहे १३.मतिज्ञानके नाम सु पांच जताए
सुमरन संज्ञा विचार लखो भिनिबोध सुचिन्नन भेद कहो है। १४.ता मतिज्ञानको कारण मान सु इन्द्री मन सबसंग लहो है।
॥छन्द मदरावरन ।। १५.प्रथम देखना फिर विचारना बहुरि परखना चितधरना । १६.बहु बहुविषि छिपा अरु अनिसृत अरु अनुक्त निश्चल बरना