SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६६ ) छाया बैठत सहज वृक्ष के नीचे ' है । फिर छाया को जाचत थामे प्रापति क्वै है ||३८|| जो कुछ इच्छा होय देनकी तौ उपकारी । द्यो बुधि ऐसी करू प्रीति सों भक्ति तिहारी ॥ करो कृपा जिनदेव हमारे परि तोषित | सनमुख अपनी जाति कौन पण्डित नहि पोषित " यथा कथंचित मक्ति र विनयी जन केई । तिनकू श्री जिनदेव मनोवांछित फल देई । फुनि विशेष जो नमत सन्तजन तुमको घ्यावे । सो सुख जस 'धन-जय' प्रापति ह्वे शिवपद पावै ॥४०॥१ बावक माणिकचन्द सुबुद्धी प्रथ बताया । सो कवि 'शांतिदास' सुगम करि छन्द बनाया ॥ फिरिफिरिक ऋषि रूपचन्द ने करी प्रेरणा । भाषास्तोत्र विषापहार को पढो भविजना ॥ ४१ ॥ ॥ इति विपापहार स्तोत्र ( हिन्दी ) समाप्त ॥ तत्वार्थ सूत्र भाषा ( श्री लाला छोटेलालजी कृत ) छप्पय - तीनकाल षट्द्रथ्य पदारथ नव सरधानों जीवकाय घट जान लेश्या घट ही मानो ॥ अस्तिकाय हैं पांच और व्रत समिति सुगत है ज्ञान और चारित्र इसे श्रुत मोक्ष कहत हैं ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy