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छाया बैठत सहज वृक्ष के नीचे ' है । फिर छाया को जाचत थामे प्रापति क्वै है ||३८|| जो कुछ इच्छा होय देनकी तौ उपकारी । द्यो बुधि ऐसी करू प्रीति सों भक्ति तिहारी ॥ करो कृपा जिनदेव हमारे परि तोषित | सनमुख अपनी जाति कौन पण्डित नहि पोषित " यथा कथंचित मक्ति र विनयी जन केई । तिनकू श्री जिनदेव मनोवांछित फल देई । फुनि विशेष जो नमत सन्तजन तुमको घ्यावे । सो सुख जस 'धन-जय' प्रापति ह्वे शिवपद पावै ॥४०॥१ बावक माणिकचन्द सुबुद्धी प्रथ बताया ।
सो कवि 'शांतिदास' सुगम करि छन्द बनाया ॥ फिरिफिरिक ऋषि रूपचन्द ने करी प्रेरणा । भाषास्तोत्र विषापहार को पढो भविजना ॥ ४१ ॥
॥ इति विपापहार स्तोत्र ( हिन्दी ) समाप्त ॥ तत्वार्थ सूत्र भाषा
( श्री लाला छोटेलालजी कृत )
छप्पय - तीनकाल षट्द्रथ्य पदारथ नव सरधानों जीवकाय घट जान लेश्या घट ही मानो ॥ अस्तिकाय हैं पांच और व्रत समिति सुगत है ज्ञान और चारित्र इसे श्रुत मोक्ष कहत हैं ॥