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। १२ ) चिन्तामणिप्रभ है सभी वरदान देने के लिये । परिणाम शुद्धि, ममाघि मुझमे योधिका मनार हो,
हो प्राप्ति चास्माकी तथा शिवसोएको भवपार हो ।११ मुनिनायकों के वृन्द जिसको स्मरण करते हैं सदा,
जिनका सभी नर अमरपति भी स्तवन करते हैं सदा । सच्छास्त्र वेद-पुराण जिमको मयंदा हैं गा रहे,
यह देवका भी देव बस मेरे हृदय मे पा रहे ।१२। जोअन्तरहित सुबोध-दर्शन और सौग्यस्वरप है,
जो सब विकागे मे रहित, जिससे प्रग्नग भयकूप है। मिलता बिना न समाघि जो, परमात्म जिसका नाम है,
देवेग यह उर पा से मेरा ना हराम है ॥१३॥ जो काट देता है जगन दुनिमित जालफो,
जो देख लेता है जगत की भीतरी भी मालफो। योगी जिमे हैं देव मरते, अन्तरारमा जो स्वयम्,
देश यह मेरे हवय पुरका निवामी हो म्वया ॥१॥ फंगल्य मन्मागं फो विपला रहा है जो हमे,
जो जनमके या मरण पता न दुस-गोह में। प्रगगेर हो तोरपदी दूर है मुफ्त में,
देवेग वह पाकर लगे मेरे हर मागे ॥१४॥ अपना निया गित तयारी-निमागि ,
गगादि रोप-पर भी एफ मो गमगा गि। नो मागमय, नित्य, मष्ट्रियों में शीन है,