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: धारे। हम आपसे दातार को प्रभु प्राज निहारे । हो. ॥२३॥ तुमही अनन्त जन्तु का भय भीर निवारा । वेदो. पुराण में गुरु गणधर ने उचारा । हम आपकी शरणागति मे आके पुकारा। तुम हो प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष इच्छिताकारा हो. ॥२४॥
प्रभु भक्त व्यक्त भक्तियुक्त मुक्ति के दानी । श्रानदकंद वृन्द को हो मुक्ति के दानी मोहि दोन जान दीनवन्धु पातकं भानी । सांसर विषम क्षार तार ग्रन्तरजामी हो. ॥२५ ॥ करुणानिधान बान को ग्रव क्यो न निहारो । दानी अनन्त दान के वाता हो संभारो । वृपचद नव वृन्द का उपसर्ग मिवाशे । संसार विषमक्षार से प्रभु पार उतारो। हो दोन बन्धु श्रीपति करुणानिधानजी । श्रव मेरी विया क्यो ना हरो बार क्या लगी ॥२६॥
श्रथ श्रठाई राता
वरत प्रठाई जे कर ते पावें भद पार, प्राणी टिका जम्बूद्वीप सुहावरो, लख जोजन विस्तार, प्राणी । १ । भरत क्षेत्र दक्षिण दिशा, पोदनपुर तिहु सार, प्राणी विद्यापति विद्याधरो, सोमराणी राय, प्राणी वरत०।२। चारणमुनि तह पारणे, श्राये राजा गेह, प्राणी सोमाराणी श्राहार दे, पुण्य बढो प्रति नेह, प्राणी चरत. 1३1 तिसी समय नभ देवता, चले जात विमान, प्रारणो जं जं शब्द भयो धनो, मुनिवर पूछो ज्ञान, प्राणी वरत. ४॥