________________
( २६ )
बार अनन्तहि प्रति माह जर मूयो सुमति न लायो । सिंह व्याघ्र श्रग्निन्त बार मुझ नाना दुख दिखायो ||२२|| बिन समाधि में दुःख लहे में, अब उर समता आई । मृत्युराज को भय नहि मानो, देवं तन सुनवाई ॥ यातं जब लग मृत्यु न ग्रावे, तबलग जप तप कीजे । are बिन इस जग के माहों, कोई भी नहि सीजें ॥२३॥ स्वर्गसम्पदा तपसों पावे, तपसो कर्म नशावं । तपसो शिवकामिनिपत, यासो तप चित सार्व ॥ अब में जानो समता दिन, मुझ कोऊ नाहि सहाई । मात पिता सुत बान्ध तिरिया, ये सब है दुखदाई ॥ २४ ॥ मृत्यु समय में मोह करें ये, तातं प्रारत हो है । भारतते गति नीची पार्व. यों लख मोह तज्यो है ॥
प्रौर परिग्रह जेते जग में, तिनसों प्रोति न को । परभव मे ये सग न चाले, नाहक भारत कीजे ॥२५॥ जे जे 'वस्तु लखत हैं ते पर, तिनसौ नेह निवारो । परगति मे ये साथ न चालें, ऐसो भाव विचारो ॥ जो परभवमेंस चलं तुझ, तिनसे प्रीति सु कीजे । पञ्च पाप तन समता धारी, दान चार विधि कीर्ज ॥ २६ ॥ दश लक्षणमय धर्म घरो उर, अनुकम्पा उर लायो । terer नित्य चितवो, द्वादश भावना भावो ॥ चारों परबी प्रोषध कीजें, प्रसन रातको त्यागो । समता घर दुरभाव निवारो, सयमसो अनुरागी ॥। २७ ॥