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( २४ । धर्म का प्रचार हो पर देश का उद्धार हो । और यह उनडा हुमा भारत चमन गुलजार हो ॥१॥ रोशनी से जान का खंमार मे परकाश हो। घम को तलवार से हिंसा का सत्यानाश हो ॥२॥ गांति अरु प्रानन्द का हर एक घर में वास हो । वीर वारसी पर सभी संसार का विश्वास हो ॥३॥ रोम और भय शोक हो दूर सद परमात्मा । कर सके कल्याए 'ज्योति' सब जगत को प्रात्मा ।। ४ ।।
श्रीचौवीस तीर्थकरों के चिहत वृषभनाय का 'वृषभ जु नान । अजितनाथ के 'हाथो' माना संभवजिनके 'घोडा' कहा । अभिनन्दनपद 'बन्दर' लहा ॥१॥ सुमतिनाथ के 'चकवा' होय । पद्मप्रभ के 'कमल' जु जोय । जिनमुपास के 'सथिया' कहा । चन्द्रप्रभ पद 'चन्द्र' जु लहा।२ पुष्पदन्त पद 'मगर' पिछान । 'कल्पवृक्ष' शीतल पद मान । श्री श्रेयांस पद 'गेंडा' होय । वासुपूज्य के 'भैसा' जोय ॥३॥ विमलनाथ पद शुकर' मान । अनन्तनाथ के 'सेही जान । धर्मनाथ के 'वज्र' कहाय । शान्तिनाथ पद 'हिरन' लहाय ।४ कुन्युनाथ के पद 'अज' जीन । अरजिनके पदचिह्न जु'मीन'। मल्लिनाथ पद 'कलश' कहा । मुनिसुव्रत के 'कछुना' लहा। 'लालकमल' नमिजिनके होय । नेमिनाथ-पद 'शङ्खजु जोय। पार्श्वनाथ के 'सर्प' न कहा । वर्तमान पद 'सिंह' हि लहा ।६