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( २० )
कुछ चैत्यालय कुछ श्रावक जन कुछ दुखिया धन देही। क्षमा क्षमा सबही सों कहिके मनकी शल्य हनेई । शत्रुन सो मिल मिल कर जोरे मै बहु करी है बुराई । तुमसे प्रीतम को दुख दीने ते सव बकसो भाई । ५ । धन धरती जो मुख सो मागे सो सब दे सन्तोषे । छहो काय के प्रानी ऊपर करुणा भाव विशेषे। रूच नीच घर बैठ जगह इक कुछ भोजन कुछ पय ले। दूधा धारी क्रम क्रम तज के छाछ प्रहार गहे ले । ६ । छाछ त्यागि के पानी राख्ने पानी तजि सथारा। भूमि माहि थिर प्रासन माडे साधर्मो ढिग प्यारा। जब तुम जानो यह न जप है तब जिनवारणी पढिये । यो कहि मौन लियो सन्यासी पञ्च परम पद लहिये ॥७॥ चार अराधन एन मे ध्यावे बारह भावना भावे । दस लक्षण मन धर्म बिचारे रत्नत्रय मन ल्यावे । तिस सोलह षट पन चारो दुइइक वरण विचारे । काया तेरी दुख की ढेरी ज्ञान मई तू सारे । । अजर अमर निज मुरगसो पूरे परमानन्द भावे. आनन्द कन्द चिदानन्द साहब तीन जगतपति ध्यावे । क्षुधा तृषादिक होइ परीषह सहे भाव सम राखे । प्रतीचार पाच सब त्यागे ज्ञान सुधारस चासे । ६ । हाड मांस सब सूख जाय जब घरम लीन तन त्यागे । अद्भुत पुण्य उपाय सुरग मे सेज उठे ज्यो जागे ।