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স্বী-নানাবিযি মুগ, যেসন নয়ন।
जासों पूजी परमपद, देव गार गुरुतीन ॥५॥ हो देशमा मगरको गारोगाAmir fito AII जे निजग राम नाग कोने, मोतिमिर ली। तिहि कर्मघाती मानीप, प्रभाग ज्योति प्रभावलो ।। सहभाति खोप प्रशास, कंचन सुभाजन में । प्रारहन्त प्रत सिद्धान्त गुरु निर्णय नित पूग ५ । दोहा-स्यपर प्रशासक ज्योति मति, दीपक तमकर होन ।
जामों पूजी परम्पद, देय शास्त्र गुस्तीन ॥६ हो देगा मान्यों मंगानाNAEE Oifte me जे कम-इंधन दरन अग्नि, समूह मम उरत समं । पर पतामु सुगन्य ताकरि, सरल परिमलता हंसे ।। हि भाति पूर पढ़ाय नित, भवग्जवलन माही नहिं प। प्ररिहन्त शुसिद्धान्त गुरु निन्य नित पूजा रचू। दोहा-प्रग्नि माहिं परिमल दहन, बन्दनादि गुणानीन ।
जासों पूओं परमपद, देव शास्त्र गुरु नौन ॥७॥ ही मनायगुगन्यो अष्टरमपहनाय पूर्ण नियं• गया II लोचन सु रमना प्राण उर, उत्साह के करतार हैं। मोपं न उपमा जाय वरपी, सकस फस गुणसार हैं। सो फल चढायत प्रमंपूरन, परम प्रमृतरस स। अरिहन्त भुत सिदान्त गुरु निन्य नित पूना रचू॥