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(६) पाप पुण्य मिल दोय, पायनि बेडी डारी। तन कारागृह माहि, मोहि दियो दुख भारी। इनको नेक विगार, मैं क्छु नाहि कियो नी । विन फारण नग बन्धु ! बहुविधि बैर लियो नी ॥ अब आयो तुम पास, सुनके सुयश तिहारो। नीति निपुण महाराज, कोले न्याय हमारो।। दुष्टन देहु निकार साधन को रख लीने । बिनवै "भूधरदास", हे प्रभु टोल न कीजे ।।
आलोचना पाठ दोहा-दर्दी पांचों परमगुरु, चौबीसों जिनराज । करूं शुद्ध मालोचना, शुद्धिकरण के कान ||१||
सजी छन्द बौदह मात्रा सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी । तिनकी प्रब निवृत्ति काजा, तुम शरण लही जिनराजा ।। इक वे ते चउ इन्द्री वा, मनरहित सहित जे जीवा । निनकी नहि करया घारी, निरदई हघात विचारी ।। समरंभ समारंभ आरंभ, मनवचतन कोने प्रारंभ । कृत कारित मोदन करिके, क्रोधादि चतुष्टय घरिक ।४। शत आठ जु इमि भेदन, प्रघ कीने पर छेदनते । तिनकी कहुं कोली कहानी, तुम जानत केवलज्ञानी 1५॥