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२१२ । शुभ पौष वदी ग्यारस जन्मे, चन्द्रप्रभ चन्द्रनगर माही । है जेठ वदी चौदह शुभ दिन जिन शाति जन्म गजपुर ठाही। कुण्डलपुर मे श्री महावीर, सित चैत्र त्रयोदश दिन प्रगटे । पद पूजो अर्घ चढाय यहा, जिससे भवभव के अघ विघटे । *ही श्रीचन्द्रप्रभशातिनाथमहावीरजिनेन्द्र स्य जन्ममगनप्राप्तायाये । वदि पौष एकादशि तपधारा, श्री चन्द्रप्रभ वन मे जाके । चौदशि वदि जेठ की शातिनाथ तपधरा चक्रपद ठुकराके । महावीर लिया तप मगसिरकी, दशमी अधियारो दिन भाई । शुभ तप कल्याणक जिनवर के, मैं जजो चरण मगल दाई। ॐ ही श्रीचन्द्रप्रभशातिनाथमहावीरजिनेन्द्र भ्य तपमगलप्राप्तायाऽयं । फागुन वदी सप्तमी को, चन्द्रप्रभ केवल बोध लहा, शुभ पौष शुक्ल दशमी दिनको, श्रीशातिनाथ घातिया दहा । वैशाख सुदी दशमी के दिन, महावीर हुए केवलज्ञानी, शुभ ज्ञान कल्याणक पद पूजों ले अर्घ जजू भव दुख हानी । ॐह्रीश्रीचन्द्रप्रभशान्तिनाथमहावीरजिनेन्द्र भ्य केवलज्ञानप्राप्तायाय । है सुदो सप्तमी फाल्गुरण की, चन्द्रप्रभ शिवपद प्राप्त किया, श्रीशांतिनाथजी जेठ बजी, चौदस वसु कर्म समाप्त किया। है कार्तिक मावस श्याम घटा, पावापुर से महावीर प्रभो, निर्धारण पधारे मै पूजू पाऊँ तुम सम ही नाथ विभो। ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभशातिनाथमहावीरजिनेन्द्र भ्य मोक्षमंगल प्राप्तायाध्य
जयमाला दोहा-शान्तिनाथ चन्द्र प्रभो, महावीर भगवान ।
भक्ति हृदय मे धारिके, सगुण करू गुणगान ।