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पूर्जी युग पद श्री जिनेन्द्र के मिटै क्षुधा दुख म्हारा । श्रष्टम | ॐ ह्री श्राचन्द्रप्रभशा तिनाथमहावीर जिनेन्द्रेभ्य क्षुधारोगविनाशनाथनैवेद्य । घृत कपूर का दीप जलाकर, प्रभु चरणो मे धारू ।
मोह प्रन्ध सो अनन्न काल का लगा उसे निरवा । श्रष्टम | ॐ ह्रीचन्द्रप्रभशान्तिनाथ महावीर जिनेन्द्रेभ्य मोहविकारविनाशनायदीपं । लय दशागी धूप अग्नि मे, खेऊ प्रभु पद भागे ।
घुम घटा बहु जोर उठे मिस, भ्रष्ट करम मम भागे । श्रष्टम | ॐ ह्री श्री चन्द्रप्रभशा तिनाथमहावीर जिनेन्द्र भ्य प्रष्टकर्म विनाशनाय घुप | रसना नेत्र लगे जो सुन्दर, गिरट इष्टफल भारी,
महामोक्ष फल प्राप्ति हेतु जिन, पद पूजों भरि थारी । श्रष्टम ॐ ह्री चन्द्रप्रभशा तिनाथमहावीर जिनेन्द्रभ्य महामोक्षफल प्राप्तये फल गीता छन्द
जलगध अक्षत पुष्प नेवज, दीप धूप सुफल मिला, करि अर्ध पद सुश्रनध्यं पावन को लगाया सिलसिला । चन्द्रप्रभ पद जजो पूजो शान्तिनाथ जिनेश जी । सन्मति चरण की करो पूजा, मिटं भव की क्लेश जी ॥ ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभशातिनाथमहावीर जिनेन्द्र भ्यऽनर्घ्य पदप्राप्तयेध्यं । पच कल्याणक घं (दुर्मिल छन्द -- राधेश्याम रामायण)
यदि चैत्र पंचमी सुखकारी, चन्द्रप्रभ गर्भ पधारे है । भावो यदि सप्तमि शांतिनाथ, माता सु उदर मे धारे है । शुक्ला प्राषाढ की तिथि षष्ठी, श्री वीर गर्भ मे आये है । यह गर्भ कल्याणक शुभदिन है मन वच तन अर्ध चढ़ाये है । ॐ ह्री श्रीचन्द्रप्रभशातिनाथमहावीर जिनेन्द्र भ्य गर्भमंगल प्राप्तायाघ्यं ।