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। २०६ ग्रामपतेरपि करणा, परेण फेनाप्युपन ते पुसि। जगता प्रमोन कितव, जिन ! माय पाल फर्मभिः प्रहते।।१७ प्रपहर मम जन्म दयां कृत्वा चेत्येक-वचसि वक्तव्य । तेनातिदग्ध इति मे देव ! बभूव पलापित्य ॥ १८ ॥ तः जिनवर | चरणाज-युग कन्यामृत-गीतसं यावत् । गमार-ताप-तप्तः पारोमि धषि तावदेय सम्यो ।।१६। जगदेक गरस ! भगय नौमि श्रीपानन्वित-गुरपोय । कि बहना गुर परणाम जने शरणमापन्ने ।२०। पुष्पांजलि। मागिरंग मानतोऽज्ञानतो वापि शास्त्रीप्तं न कृतं मया।
तत्म पुगंमेवास्तु त्वत्प्रमादाग्जिनेश्वर ॥१॥ प्राहाननं नंब जानामि नंब जानामि पूजन । चिमनं न जानामि क्षमन्य परमेश्वर ! ॥२॥ मन्त्रहीन क्रियाहीन द्रव्यहीन तथंचन । तत्सर्व क्षम्यतां देव रक्ष रक्ष जिनेश्वर ।।३।। समाप्त ।।
श्री त्रय जिनेन्द्र पजा श्री परप्रम-गान्तिनाग महावीर जिन पूजा) [ ग्य०५० भगवतस्वम्प जन 'भगवत', फगेहा )
यय यन्द श्री चन्द्र-प्रभ नमों, अष्टमे जो तीर्थर । नमो शानि जिननाथ, मदन चकोत्रय पद घर । वर्दमान जिनराय, चरण को शीश नवाऊँ। भक्ति हृदय में धारि, मष्ट विधि पून रचा।।