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२०४ ] मेढक कमल पाखुडी मुख ले, वीर जिनेश्वर घायो । श्रेणिक गज के पगतल मुवो, तुरत स्वर्गपद पायो । नाप.।। मैनासुन्दरी शुभ मन सेती, सिद्धचक्र गुरण गायो। अपने पति को कोड गमायो, गंधोदक फन पायो ।नाथ.।। अष्टापदसे भरत नरेश्वर, मादिनाथ मन लायो। अष्टद्रव्यले पूज्या प्रभुजी, अवधिज्ञान दरशायो ।नाथ ।। अंजन से सब पापी तारे, मेरो मन हुलसायो। महिमा मोटी नाथ तुम्हारी, मुक्तिपुरी सुख पायो ।नाथः।। थकि थकि हारे सुर नर खगपति, प्रागम सीख जतायो । 'देवेन्द्रकोति' गुरुज्ञान 'मनोहर'. पूजा ज्ञान बतायो ।नाथ.॥ स्तुति-तुम तरणतारण भवनिवारण, भविकमन प्रानन्दनो।
श्रीनाभिनन्दन जगतवन्दन, आदिनाथ निरजनो ॥१॥ तुम आदिनाय अनादि सेऊ, सेय पदपूजा करूं। कैलाश गिरि पर ऋषभ जिनवर, पदकमल हिरदै घरू ।। तुम अजितनाथ अजीत जीते, अष्टकर्म महाबली । यह विरद सुनकर शरण आयो, कृपा कीज्यो नाथजी ॥३॥ तुम चन्द्रवदन सु चन्द्रलच्छन, चन्द्रपुरी परमेश्वरो। महासेननन्दन, जगतवन्दन चन्द्रनाथ जिनेश्वरो ॥४॥ तुम शान्ति पांचकल्यारण पूजो, शुद्ध मनवचकाय जू। दुर्भिक्ष चोरी पापनाशन, विघन जाय पलाय जू ॥ ५ ॥ तुम बालब्रह्म विवेकसागर, भव्य कमल विकासनो। श्री नेमिनाय पवित्र दिनकर, पापतिमिर विनाशनो॥६॥