SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | २०१ वार मनोहर मंत्र जाप करना चाहिये ) मई महानुभाव उक्त महाप्रयां केम्यान पर पंचपरमेष्ठी यह निम्न प्रकार है। दोनों में कोई एक बोलना ( यहा का जमा यो ही है। अथ पंचपरमेष्ठि जयमाला प्राकृत मातृ-गाइन्द-मुरधरियत्तत्तथा पचकल्याण- सुवलाबनी पता || दंसणं गारणकारण अरगतंचलं ते जिरगादितु म्ह वर मंगल ॥१॥ जेहि भारग्गियाहि यय, जम्मा मरणयात्तयं वयं । जेहि पत्त सिव सासयं ठारायं ते महा दितु सिद्धा वरं साराय || २ || पचहाचारपंचगमाया, चान्सगाह सुयजलहि श्रवगाया । मोक्खलच्छी महन्ति महं ते तथा सूरिणो दितु मोघल गया संगया ॥ ३ ॥ घोरतंसार - भीमादवो कारणणे, तिथखवियरान - खट्ट - पाच-पंचारणे । गट्ट मग्गारण- जीवाण पदेमया, बदिमो ते उवज्झाय म्हे सया ॥ ४ ॥ उग्गतवयरण करणेह भी गया । धम्मवर भारणसुक्येयक भारणगया । भिर तवमिरीचे समालिया, सानो ते महामोक्ल पद्मग्गया । ५॥ एए थोरण जो पत्रगुरु वदए गुरुयसंसारवेल्लि सी दिए । लहिए मो सिद्धसुक्खा इवर मारणं, कुराई कम्मिधरणं पुञ्जपज्जाल । - रिहा सिद्धइरिया, वाया साधुपञ्चपरमेट्ठी । एयर णमुपकारो, नवे भवे मम सुह दितु ॥ १ ॥ * ही ग्रतमिद्धाचापाध्यायसचं साधु-पचपरमेष्ठिभ्योऽर्घ्यं महाघ्यं t
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy