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जिनका नाम लिये से होती जागृति पुण्य-कला है। करू वन्दना उन गुरुपद की वे गुरण मै भी पाऊ । आह्वानन सस्थापन सन्निधि-करण करू हर्षाऊ ।। ॐ ह्री श्रीयकम्पनाचार्यादि सप्तशतमुनिसमूह अत्र अत्र अवतर २ सवौषट् इत्याह्वाननम् । अत्र तिष्ठ २०ठ स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।
अथाष्टकम्-गीता-छन्द । मै उर-सरोवर से विमल जल भाव का लेकर अहो । नत पाद-पद्मो मे चढाऊ मृत्यु जनम जरा न हो। श्रीगुरु प्रकम्पन प्रादि मुनिवर मुझे साहम शक्तिदें । पूजा करू पातक मिटें, वे सुखद समता भक्ति दें। ॐ ह्री श्रीप्रकम्पनाचार्यादिसप्तशतमनिभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशाय जल सन्तोष मलयागिरिय चन्दन निराकलता सरस ले।। नत पादपद्मो मे चढाऊ, विश्वताप नही जले ॥श्रीगुरुचिदन। तदुल अखडित पूत प्राशाके नवीन सुहावने । नत पाद-पद्मो मे चढाऊ दीनता क्षयता हने ।श्रीगुरु.।प्रक्षत। ले विविध विमल विचार सुन्दर सरस सुमन मनोहरे । नत पाद-पद्मो मे चढाऊ काम की बाधा हरे ।।श्रीगुरु 'पुष्प। शुभ भक्ति घृत मे विनय के पकवान पावन मे बना । नत पाद-पद्मोमे चढा, मेटू क्षुधा की यातना श्रिीगुरु निवेद्य। उत्तम कपूर विवेकका ले प्रात्म-दीपक मै जला। कर आरती गुरुको हटाऊ मोह तमको यह बला ।श्रीगुरु दो ले त्याग-तप को यह मुगन्धित धूप में सेऊ अहो । गुरुचरण-करुणासे करमका कष्ट यह मुझको न हो।श्रीगु धूिप