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शुचि-साधना के मधरतम प्रिय परस फल लेकर यहां। नत पाद-पद्मोमे चढाऊ मुक्ति मै पाऊ यहां । श्रीगुरु.फिल। यह आठ द्रव्य अनूप श्रद्धा स्नेह से पुलकित हृदय । नत पाद-पद्मो मे चढा भवपार मै होऊ अभय ।श्रीगुरु. अध्य
जयमाला सोरठा-पूज्य अकम्पन आदि, सात शतक साधक सुधी। यह उनकी जयमाल, वे मुझको निज भक्ति दें।
(पद्धडि छन्द) वे जीव दया पाले महान, वे पूर्ण अहिंसक ज्ञानवान । 'उनके न रोष उनके न राग, वे करें साधना मोह त्याग ॥
प्रिय असत्य बोले न बैन, मन वचन कायमे भेद है न । वे महासत्य धारक ललाम, है उनके चरणो मे प्रणाम ।। वेलें न कभी तणजल अदत्त, उनके न धनादिक मे ममत्त । वे व्रत प्रचौर्य हद धरै सार, है उनको सादर नमस्कार । वें करें विषय की नहीं चाह, उनके न हृदय मे काम-दाह । व शील सदा पाले महान, कर मग्न रहे जिन पात्मध्यान ।। मब छोड वसन भूषण निवास,माया ममता अरु स्नेह पास ।
घर दिगम्बर वेष शान्त, होते न कभी विचलित न भ्रांत ।। नित रहे साधना मे सुलीन, वे सहे परीषह नित नवीन । वकर तत्त्वपर नित विचार, है उनको सादर नमस्कार ।। पंचेन्द्रिय रमन करें महान, वे सतत बढावें प्रात्मज्ञान । संसार वेह सब भोग त्याग, वे शिव-पथ साधे सतत जाग ।