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wmmmmmmmmmmmmmmmmmin. कुल रहे केश काले कराल, बहु रहा लाल प्रांखें निकाल । बनता प्रसन्न वह व्यन्तरेश, मनमे भजते जो जन जिनेश ॥३॥ बहु भीषण जलचर से दुरुह, तट अधिक हुमा जलका समूह । गोखुर प्रमाण होता जलेश, मनमे भजते जो जन जिनेश ॥४॥ सिर चमक रही मरिणफन महान, यलोक क्षोभ कारण महान नहिं डरता क्रूर भुजंगमेश, मनमे भजते जो जन जिनेश ।।५।। जहँ तीव्र ज्वाल माला प्रसार, घृत तेल हवा से दुगुरणझार । वह शात होय जिम तारकेश, मनमे भजते जो जन जिनेश ।। पड जेल बंधे जंजीर डार, बन्धु जिनके रोते अगार । वे छूट अभय पाते अशेष, मनमे भजते जो जन जिनेश ॥७॥ फंस रहा मनुज रिपुचाल बीच, बहु सकट कष्ट अनेक कोच । असि कमलवन नहिं हो क्लेश, मनमे भजते जो जन जिनेश ।। दोहा-होते सुर असुरेश सब, अरु विद्याधरराज ।
वशमे उनके सर्वदा, सुमरत जो जिनराज ।। ॐ ह्री श्री क्ली ऐं अहं कलिकुण्डदण्डश्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्रपद्मावतीसेविताय अतुलवलवीर्यपराक्रमाय सर्वविघ्नविनाशनाय हम्ल्व्यरू भल्व्यू म्म्ल्व्यरूं रम्ल्व्य म्ल्व्यर्स इम्ल्व्य स्म्लष्यरूँ रूम्ल्व्यरूं अनर्घ्यपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रक्षा-बन्धन-पूजा
(श्री विष्णुकुमार पूजा) अडिल्ल छन्द -विष्ण कुमार महामुनिको ऋद्धि भई ।
नाम विक्रिया तासु सकल प्रानन्द ठई ॥