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[ १७५ समर दृष्टि जल जीत लहि मल्लयुद्ध जय पाय ।
वीर अग्रणी बाहुबलि, वन्दो मन वच काय ।। ॐ ह्री श्रीगोमटेश्वरबाहुवली स्वामिन् अम अवतर अवतर सवौषट्, माह्वानन । अत्र निष्ठ तिष्ठ ठ ठ, स्थापन । अब मम सन्निहितो भव भव वपट. मन्निविकरणम् ।
अथाष्टक-चाल जोगीरासा। जन्म जरा मरणादि तृपा कर, जगत जीव दुख पावे । तिहि दुख दूर करन जिनपदको, पूजन जल ले प्रावे ।। परम पूज्य वीराषिवीर जिन, वाहुवली बल धारी। जिनके चरणकमलको नितप्रति, धोक त्रिकाल हमारी॥ ॐ ह्री कर्मारि विजयी वीराविवीर श्रीगोमटेश्वर वाहुवली परम योगीन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि०। यह ससार मरुस्थल अटवी, तृष्णा दाह भरी है । तिहि दुख टारन चन्दन लेके, जिनपद पूज करी है । पर.चं.।। स्वच्छ सालि शुचि नीरज रज सम, गंध प्रखड प्रचारी। अक्षयपद के पावन झारन, पूजे भव जगतारी ॥ पर.अक्षत।। हरिहर चक्रपती सुर दानव, मानव पशु बस पाके ।। तिहि मकरध्वज नाशकजिनफो,पूजों पुष्प चढ़ाके । पर.पुष्प।। दुखद त्रिजग जीवनको अतिही, दोष क्षुधा अनिवारी । तिहि दुख दूर करनको चरुवर, ले जिन पूज प्रचारी।पर.न.।। मोह महातम ने जगजीवन, शिव मग नाहि लखावे । तिहि निवारन दीपक करले, जिनपद पूजन पावे ॥पर.दीपं।।