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भनभन
हरवं
शोभन गुन मद समर पर समान नवेश न मिटायनमेव भावन गुत किया । रमप्रभु हरनिये ।।
तमन्नाशक व्यपरायणा
हिमपर पोपन तर निक्षेप प्रामोदय मावि दुपारी ज्ञानी । तर नदिन सुग्भ विज्ञानी प फन का दोहन जनमो
ग्रस्त मस्त मेकर प्रतिमोहनेर. फर्स मग ग्रादि मार
भग
मन प्रभाव उपाय कर में घाव व वनायकं वश्ये।।
अक्षा
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भ्रमणा
परम तो परतार श्री यमान जगपान । कल मन वन दिन विकम । गाऊँ तिन जयमाल ॥१॥ जयति भूमिमा पाया रोवान || पोमु विमान ठान ||१|| कृष्णपुर विदा नृपेशा मा जननी ॥ दिन नया युग विज्ञान | तम यश निवार भान ॥२॥ हिमपदिति दिनेश | ये हवन गनकगिरि-शिर सुरेश | योग गुगरान । मृग दिव्य भोग भुगते विशाम ॥ ३॥ा मारगरि प्रति म पनि शिविका विभित्र || घमि पुरन गिद्धन तीन नाय । पाये गम वर धर्मादाय ॥४॥