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जय जय चांदनपुर महावीर तुम भक्त जनों को हन्त पीर । 'चेनन जग मे लवत ग्राप, कई हादशांग वानी नाप ॥१॥
अब पचन काल मार् ग्राय, चांदनपुर मे दौर, तिहरा गाव
निशय दिखाय । प्रापीर ॥२॥
टोले के अन्दर के वाला को फिर गाह कौन, उद दर्शन अपना श्राप दीन । मूरत देवी ही तूप, नग्न दिगम्बर शान्ति रूप | ३ | तहां श्रावक जन वह गये प्राथ, कीन्हे वशन नन वचन काय । है कि ठीक ज्ञान, निश्चय हैं ये श्री वर्द्धमान ॥४॥ सब देगनके श्रावक जु आय, विन भवन अनूपन दियो बनाया फिर शुड दई वेदी राय, तुरतहि गजरयमु लियो सजाय ५ । ये देख ग्वान मनमे वीर, मम गृह को त्यागो नहीं दीर । तेरे दर्शन दिन तजुळे प्राण सुन मेरी हे कृपा निधान ॥६॥ कीने रथ ने प्रभु विराजमान, रथ हुआ प्रचल गिरि के मान तब तरह २ के किये जोर, बहुतक रथ गाडी दिये तोड |७| निशिमाहि स्वप्न चिहि दिलात स्थचले ग्वालका हाथ। भोरहिट चरण दियो बनाय, नन्तोष दियो ग्वालह कराय । करि जय जय प्रभुको कमी ढेर, रथ चल्यो फेर लागी न देर । बहुनृत्य करत बाजे बजाय, स्थापन कोने तहं भवन बाय ।। इकदिन मंत्री को लगा दोष, घरि तोप कही नृप खाइ रोष । तुमको जब घ्याया वहां वीर, गोला से झड बच गया वजीर मंत्री नृप चांदन गांव आय, दर्शन करि पूजा की बनाय । करि तीन शिखर मन्दिर रचाय, कंचन कलशा दोने घराया
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