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वर बावनचंदन, कवलीनन्दन, धनप्रानन्दन सहित घसो। भवतापनिकन्दन, ऐरानन्दन, वन्दि अमन्दन,चरण वसोंधी.।२
ह्री श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदन नि० स्वाहा । हिमकरकरि लज्जत,मलयसुसज्जत, प्रच्छत जज्जत भरिथारी। दुखदारिद गज्जत,सदपदसज्जत, भवभयभज्जत प्रतिभारी।श्री. ॐ ह्री श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये प्रक्षतान् नि० स्वाहा। मंदार सरोज कदली जोज, पुंज भरोज, मलयभर । भरि कचनथारी, तुमढिग धारी मदनविदारी धीरघर श्री.।४
ही श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय कामवाणविध्वसनाय पुष्प नि० स्वाहा।' पकवान नवोने, पावन कीने, षटरसभीने सुखदाई। मनमोइनहारे, क्षुधा विदारे, प्रागै घार, गुनगाई ।श्री.॥५॥
ही श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि म्वाहा । तुम ज्ञानप्रकाशे. भ्रमतमनाशे, शेयविकाशे सुखराशे । दीपक उजियारा, यातै धारा, मोह निवारा निजभासे।श्री.।६। अह्री श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय मोहाधकार विनाशनाय दीप नि स्वाहा। चन्दन करपूर करिवर चूर, पावक भूरं, माहिजुरं । तसु घूम उडावे, नाचत प्रावै, अलि गुजावे, मधुरसुराश्री.1७ ॐ ह्री श्रोशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूप निर्व० स्वाहा । वादाम खजूरं, दाडिम पूरं, निबुक भूर, ले पायो । तासों पद जज्जों,शिवफल सज्जों, निजरसरज्जो, उमगायो।बी। ॐ ह्री श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल नि० स्वाहा । वसु द्रव्य सवारी, तुमढिंग धारी, प्रानन्दकारी गप्यारी । तुम हो भवतारी, करुनापारी, यातै थारी, शरनारी श्री.।।