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छन्द चोवोला आठो दरव मिनाय गाय गुण, जो भविजन जिनचद जज । ताके भव भवके अघ भाज, मुक्तिसार मुख ताहि सजै ॥२०॥ जमके त्रास मिटै सब ताके, सकल अमगल दूर मजै ।। 'वृन्दावन' ऐमो लखि पूजत, जातै शिवपुरि राज रज ॥२१॥
इन्यागीर्वाद । पुष्पालि क्षिपेत् । इति श्रीचन्द्रप्रभजिनपूजा ममाप्तम् । श्री शान्तिनाथ जिन पूजा
मत्तगयन्द छन्द ( पनकालकार ) या भवकानन मे चतुरानन, पापपनानन घेरि हमेरी । प्रातम जानन मानन ठानन, वान न होइ दई गठ मेरी॥ तामद भानन आपहि हो, यह छान न पान न प्राननटेगे। श्रान गही गरनागतको, अव श्रीपतजी पत गखहु मेरी ॥१॥
ही थीगान्निनाथ जिनेन्द्र । अत्रावतर अवतर, मवीपट । *ही श्रीगान्तिनाथ जिनेन्द्र । अत्र तिष्ठ निष्ठ,ठ ठ ।
ही श्रीगालिनाय जिनेन्द्र | अब मम मनिहितो भव भव, वपट् । [ अष्टा ] ठन्द विभगी। अनुप्रासक । ( मात्रा ३२ नगनजित।। हिमगिरिगतगगा, धार प्रभगा प्रामुक मगा, भरि मृगा । जरजन्म मृतगा, नागि अघगा, पूजि पदगा मृदुहिगा ।। श्रोशान्तिाजनेश, नुतनावगं, वृपचक्रेशं चक्रेग । हनि परिचक्रेणं, हे गुनवेश, दयामृनेश मग १॥ ॐ ही योगाग्निनाय जिनेन्द्रार जन्मजगमृत्युविनागनाय जल नि म्या १.उसारस्प जगन। २ नमन। ३ पार नष्ट करने वा।८ ग्रान्मायो जानने, ममनने प्री-उसमे स्थिर होनेकी पादत न होने टना।