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शुनगालि ग्रसहित मौरभ-मस्ति, प्रागुरुजलमी घोर ल्याय । श्रीजीके चरन चायो, भविजन, अक्षयपदको तुन्त उपाय ।
श्री आदि० ।। प्रक्षत ।। फमल पेतकी वेल चमेली, श्रीगुलाब के पुप्प मंगाय । श्रीजीके चरण चढाबो भविजन, रामबाण तुन्न नशि जाय ।।
श्री प्रादि० ।। पुष्पं । नेवज लीना तुन्त रस भोना, श्रीजिनवर नागे घरवाय । थाल भराऊ क्षुधा नाऊँ, ल्याऊँ प्रभुके मगन गाय ॥
श्री ग्रादि० निवेद्य। जगमग गमग होत दशो दिशि, ज्योति रही मदिरमे छाय। श्रीजीके सम्मुख करत भारती, मोह-तिमिर नाग दुसदाय ।।
__ श्री ग्रादि० ॥ दीपं ॥ अगर कपूर सुगन्ध मनोहर, चन्दन कूट सुगन्ध मिलाय । श्रीजीके सम्मुख खेय धुपायन, कर्म जरे चहुँ गति मिट जाय ।
श्री आदि० ॥ धूप ॥ श्रीफल और बदाम सुपारी, केला ग्रादि छुहारा ल्याय । महामोक्ष फल पावन कारन, ल्याय चढाऊँ प्रभु के पाय ।।
श्री आदि० ॥ फलं ॥ शुचि निरमल नीर गन्ध सुअक्षत, पुष्प चरु ले मन हरषाय । दोप धप फल अर्घ सु लेकर, नाचत ताल मृदग बजाय ।।
श्री सादि० ॥ अयं ॥