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जय सम्भव जिन भवकूप माहि, डूबत राखहु तुम शरण प्राहिं । जय अभिनन्दन प्रानन्द देत, ज्यों कमलों पर रवि करत हेत ॥ जय सुमति सुमतिदाता जिनन्द, जय कुमतितिमिर नाशमदिनंद जय पनालकृत पनदेव, दिनरैन करहुँ तव चरन सेव ।। जय श्रीसुपार्श्व भवपाश नाश, भविजीवन दियो मुक्तिवास। जय चन्द जिनेश दया निधान, गुरगसागर नागर सुख प्रमान । जय पुष्पदत जिनवर जगीश शतइन्द्र नमत नित प्रात्मशीश । जय शीतल वच शीतलजिनद, भवताप नशावत जगतचन्द ।। जयजय श्रेयास जिन प्रति उदार,भविकंठ माहि मुक्तासुहार । जय वासुपूज्य वासव खगेश, तुम स्तुतिकरि पुनि नमिहै हमेश ।। जय विमल जिनेश्वर विमलदेव, मलरहित विराजत करहुं सेव। जय जिन अनतके गुण अनंत, कथनी कथ गणघर लहै न अंत ।। जय धर्मधुरंधर धर्मधीर, जय धर्मचक्र शुचि ल्याय वीर । जय शाति जिनेश्वर शांतभाव, भववन भटकत शुभमग लखाव। जय कुन्यु कुन्यवा जीव पाल, सेवक पर रक्षा करि कृपाल । जय अरहनाथ अरि कर्म शैल, तपवज्र खड लहि मुक्ति गैल ॥ जय मल्लि जिनेश्वर कर्म पाठ, मल डारे पायो मुक्ति ठाठ । जय सुव्रत मुनिसुव्रत घरत, जय सुव्रत व्रत पालत महत ।। जय नमियनमत सुरंवृन्द पाय, पद पंकज निरखत शीश नाय । जय नेमि जिनन्द दयानिधान, फैलायो जगमे तत्त्वज्ञान ॥ जय पारस जिन पालस निवारि, उपसर्ग रुद्र कृत जीतधारि । जव महावीर महाधीरधार, भवकूप थको जगतै निकार ॥