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श्री देवी प्रथम वग्वानो, इन श्रादिक चौवीसो मानी । तत्पर जिन भक्ति विषै हैं, पूजत सत्र रोग नशे है ॥ ॐ हो मर्योपद्रव विनामननमयन्य श्री ग्रादिचनु विद्यतिदेवी यो प्रध्यं
हमा छन्द
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यन्त्र दिये वरन्यो तिरके न हों तहें तीन युक्त सुखभोन । जल फलादि वसु द्रव्य मिलाय, घं महित पूज् शिरनाय ॥ ॐ ही सर्वोपद्रवविनाशनममर्थाय निकोणमध्ये तीनही नयुक्तायार्घ्यं तोमर छन्द
दस प्राठ दोष निरवारि, छियालीस महा गुण धारि । वसु द्रव्य अनूप मिलाय, तिन चनं जजो सुखदाय ।। ॐ ह्री सर्वोपद्रवविनाशनममर्थाय ग्रष्टादगदोपहिताय पट्चत्वारिंगत महागुणयुक्ताय श्रर्हपरमेष्ठिने ग्रयं ।
नोरठा - दश दिश दिग्पाल, दिशानाम सो नामवर । तिनगृह श्री जिन प्राल, पूर्जो मै वन्दों सदा ॥ ॐ ह्री नर्वोपद्रवविनाशनसमर्थेम्य दगदिग्पालेभ्य जिनभक्तियुक्तेभ्योऽ दोहा - ऋषिमण्डल शुभयन्त्र के, देवी देव चितारि । घं सहित पूजहुँ चरन, दुख दारिद्र निवारि ॥ ॐ ह्री सर्वोपद्रर्वाविनाशनसमर्थेभ्य ऋपिमंडल - सम्बधिदेवीदेवेभ्योऽर्घ्यं •
जयमाला
दोहा - चौबीसो जिन चरन नमि, गणधर नाऊँ भाल । शारद पद पंकज नमू, गाऊं शुभ जयमाल ॥ जय आदीश्वर जिन त्रादिदेव, शत इन्द्र जर्ज मै करहुँ सेव । जय अजित जिनेश्वर जे अजीत, जे जीत भये भवते प्रतीत ॥