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उनमें सबसे प्रथम में पं० जुगलकिशोर मुख्तार, श्री नाथूराम प्रेमी, डा० हीरालाल और डा० ए० एन० उपाध्येका स्मरण करता हूँ, जो अब इस संसार में नहीं हैं । जैन साहित्य और उसके इतिहासके सम्बन्धमें जो लब्ध है वह इन्हीं मनीषियोंकी देन है । इनके पश्चात् मैं स्वीकार करता हूँ ।
कुछ ज्ञान आज उपअन्य सबका आभार
देहलीके लाला पन्नालालजी अग्रवाल एक ऐसे सज्जन पुरुष हैं जिनके द्वारा दिल्ली के शास्त्र भण्डारोंसे प्रतियाँ घर बैठे उपलब्ध हो जाती हैं । इसी तरह श्री महावीरजी अतिशय क्षेत्र कमेटी जयपुरके मंत्रीजीकी कृपासे डा० कस्तूरचन्दजी कालीवालके द्वारा प्रतियां उपलब्ध होती रहती हैं । अत इन सबका भी मैं आभारी हूँ ।
वर्णी- ग्रन्थमालाके मंत्री डॉ० कोठिया तथा श्री बाबूलालजी फागुल्लके प्रयत्नसे ही यह भाग शीघ्र प्रकाशित हो सका है। अतः उनका भी आभार स्वीकारता हूँ ।
भाद्रमास २५०२ } भदैनी, वाराणसी
कैलाशचन्द्र शास्त्री