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________________ भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ४९ ह० पु० (७।३०) में 'शिरः प्रकम्पित' दिया है। ति० ५० में सिरिकप्पं' के पादटिप्पणमें 'सिरिकंपे' और 'सिरकंप' ये दो पाठान्तर दिये हैं। जिससे प्रकट होता है कि पुराणकारके सन्मुख ति० प० की जो प्रति थी उसमें 'सिरकंप' पाठ था उसीका अनुवाद 'शिरः प्रकम्पित' दिया गया है। ति०प० के प्रथम अधिकारमें अंगुल, पल्य वगैरहका वर्णन है और चौथेमें काल गणनाका कथन है। ह० पु० में इन दोनों कथनोंको सातवें सर्गमें आगे पीछे दिया है। ह० पु० में केवल संख्यात कालका ही वर्णन है। ति० प० अ० ४ में भी संख्यात तकका कथन तो गाथाबद्ध है । आगेका कथन गद्यमें है। यह कथन हरि० पु० में नहीं है । अतः गद्य भाग उस समय भी ति० प० में था या उसके पीछे उसे मिलाया गया यह नहीं कहा जा सकता। यह गद्य भाग तत्त्वार्थ वार्तिकके वर्णनसे मिलता है । ति० प० के प्रथम अधिकारमें मानका कथन परमाणुसे प्रारम्भ किया है। उसमें परमाणुका स्वरूप बतलाने वरली (९५-१०१) छ गाथाएँ हैं जो पञ्चास्तिकाय आदिमें भी हैं। उनमेंसे केवल तीन गाथाओंका अनुवाद ह० पु० में है। ___ इससे यह भी प्रमाणित होता है कि ति०प० में जो अन्य ग्रन्थोंकी गाथाएँ पाई जाती हैं वे उसमें पहलेसे ही हैं, पीछेसे सम्मिलित नहीं की गई हैं। ह. पु० के छठे सर्गमें ज्योतिलोक ओर स्वर्गलोक तथा सिद्धलोकका संक्षिप्त कथन है। यह कथन भी ति० प० के अन्तिम तीनों ज्योतिर्लोकाधिकार, कल्पवासी लोकाधिकार और सिद्धलोकाधिकारका ऋणी है। हरि० पु० के कर्ताने ति० प० के इन तीनों अधिकारोंकी कतिपय बातोंको छठे सर्गमें एकत्र कर दिया है। किन्तु ज्योतिर्लोकका वर्णन केवल ३३ श्लोकोंमें किया है। उसमें ज्योतिषी देवोंकी पृथ्वीसे ऊपर आकाशमें अवस्थिति, उनकी आयु, उनके विमानोंका परिमाण, वर्ण और भ्रमण, तथा द्वीप समुद्रों पर उनकी अवस्थिति मात्रका कथन किया है। जहाँ यह कथन तिलोयपण्णत्तिसे मिलता है वहाँ उसमें कुछ अन्तर भी है और ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रन्थकारने शायद तत्त्वार्थवार्तिक (४-१२) का भी कुछ अनुसरण किया है। ति० प० और तत्त्वार्थवार्तिकमें आकाशमें ग्रहोंके अन्तरालकी अवस्थितिको लेकर अन्तर है। यह कथन तो ह० पु. में ति० ५० के ही अनुसार है किन्तु राहुके विमानका बाहुल्य २५० धनुष तत्त्वार्थवातिकके अनुसार है। ति० प० (७-१०३) में यह बाहुल्य लोकविनिश्चय कर्ताके मतानुसार मतान्तर रूपसे दिया है । इसके सिवाय ह. पु० में
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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