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३४० : जैनसाहित्यका इतिहास
अपनी रीतिसे वैसा ही किया है । १५वीं गाथासे अजीव द्रव्योंका कथन आरम्भ होता है | गाथा १६ में तत्त्वार्थ सूत्र ५ - २४ की तरह शब्दादिको पुद्गल की पर्याय बतलाया हैं । गाथा २८ से आस्रव आदिका वर्णन प्रारम्भ होता है । भाव और द्रव्यकी अपेक्षा प्रत्येक के दो भेद करके प्रत्येकका स्वरूप बहुत संक्षेपमें किन्तु सरल और स्पष्ट रीतिसे बतलाया है । गाथा ३५ में व्रत, समिति, गुप्ति; धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह जय जौर चारित्रको भावसंवरके भेद बतलाया है । तत्त्वार्थ सूत्रमें व्रतोंको तो पुण्यास्रवका कारण बतलाया है और शेषको संवरका कारण बतलाया है । किन्तु चूँकि व्रतोंमें निवृत्ति अंश भी होता है इसलिये उन्हें संवरके कारणों में गिना हैं। तीसरे अधिकार में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्रका स्वरूप बतलाकर ध्यानाभ्यास करनेपर जोर दिया है क्योंकि ध्यानके बिना मोक्षकी प्राप्ति संभव नहीं है ।
ध्यानके भेद और स्वरूपादिका कथन तो नहीं किया, किन्तु पञ्चपरमेष्ठीके वाचक मंत्रोंको जपने तथा उनका ध्यान करनेकी प्रेरणा की है और इसलिये अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साघु इन पञ्चपरमेष्ठियोंका स्वरूप एकएक गाथाके द्वारा बतला दिया है । अन्तमें कहा है कि तप, श्रुत और व्रतोंका धारी आत्मा ही ध्यान करनेमें समर्थ होता है, अतः ध्यानकी प्राप्तिके लिये सदा तप, श्रुत और व्रतोंमें लीन होना चाहिये ।
इस तरह ग्रन्थकार ने बहुत ही संक्षेपमें जैन दर्शनके मूल तत्त्वोंका कथन इस ग्रन्थ में किया है ।
लघु द्रव्य संग्रहके अन्तकी गाथामें ग्रन्थकारने अपना नाम नेमिचन्द गणि दिया है और वृहद्रव्य संग्रहकी अन्तिम गाथामें अपनी लघुता प्रकट करते हुए दोष रहित और श्रुतसे परिपूर्ण मुनिनाथोंसे प्रार्थना की है कि वे अल्पश्रुतधर नेमिचन्द्र मुनिके द्वारा रचे हुए द्रव्य संग्रहको शुद्ध कर लें ।
जैन परम्परामें नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती नामके एक बहुत बड़े आचार्य हो गये हैं । जिन्होने गोम्मटसार जैसे महान ग्रन्थोंकी रचना की है । इस द्रव्य संग्रहको भी उनकी ही रचना समझा जाता था । द्रव्य संग्रहके अंग्रेजी अनुवादकी भूमिका में श्रीशरच्चन्द्र घोषालने इसे उन्हीं की कृति बतलाया है । किन्तु उसकी समालोचना करते हुए श्री पं० जुगल किशोरजी मुख्तारने जैन हितैषी, भाग १३, अंक १२ में इसका विरोध किया है । उन्होंने पुरातन जैन वाक्य सूचीकी अपनी प्रस्तावना में ( पृ० ९२-९४) उसके निम्नकारण बतलाये हैं ।
१. द्रव्य संग्रहके कर्ताका 'सिद्धान्त चक्रवर्ती के रूपमें कोई प्राचीन उल्लेख नहीं मिलता। संस्कृत टीकाकार ब्रह्मदेवने भी उन्हें सिद्धान्त चक्रवर्ती नहीं लिखा,