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८२ जनमाहित्यका उनिहाग
उग गणग्गानीका अन्तगाल नही होता, गेप आठ गुणगाना है। अर्मात् उन आट गणरवानीगं गुर गगग ना कोई जीन नही गागा जाना । जंग क्षेप भेणी नार गुणरबानाग और गीगाली गणग्गागम - अमित माग तीन गाया गा
अगम कुल ३९५ गार।
७ भागानगग-~~मा उग, भग आणि निगिनगे जीवन जो परिणाग विशेप होते है उन्हें भार पहने। में भाव पान पाहा :-औगिगा, और. शगिा, भागिल, गोजागिर और पारिवागि उगनेवाले भाा. को औगिगार
गाँr समग उनि गरे भावी योगमगिक
भागमा प्राट होने रे गा माना। भाभिार गहते है । "111 उपगले गा जो जीनग अंग पका होता है यह भागोषणमित भाय। जो न मागे भाग निजी गौर अजीवगन नाश होता नह परिणामिक भाव।
ग अनुयोगताम्मे आप और नामंगमा नायन दिया है। भोग गायन मारने एक -'गिव्याटि गा गोन-गा भाव है और भाव है ॥ २ ॥ 'मागादनमम्मदाटी गह पौन-गा भाव है' पाग्णिागि भार है। गम्गग्गिध्यादृष्टि या कौन-सा भार ' भागोगनगिा भान है ॥ ॥ मयतगम्यादाटी या गोन-गा भान है ? औषमिर भार भी है,भागिक भाव भी है और क्षायोगगगिक भाव भी है ॥ ५ । गगनागयत, प्रमत्तगयत और अप्रमत्तगयन यह कौन-गा भाव है • भायोपामिक भाव है ।। ७ ।। उगी प्रकार नौदह गणम्थानाम भावकी प्रस्पणा करके पुन मार्गणारयानाम भावोका गबन किया है । धवलाटीकाम प्रोगमा उपपादन लिया है I यो अमुक भाव है। इसमें ९३ सूप है।
८ अल्पबहुत्वानुगम-द्रव्यप्रमाणानुगममे बतलाई गई जीवमभ्याके आधार. पर गुणस्थानो और मार्गणास्थानोमे मम्याकृत हीनता और अधिकताका कथन इस अनुयोगद्वारमै है। अन्य अनुगमोकी तरह इसका आरम्भ भी 'दुविही गिद्देमी , 'चदुग्नग अजोग कोणमनर केनिर कानादि ? गाणा नान पन्न
जएण्णेण एगममय' ॥ १६ ॥ 'उपकम्मेण सम्मान ॥ १७ ॥'-पट्य०, पु० ., प०००-१ 'भोघेण मिच्छादिदिल त्ति को भावो, औढरा भानो ॥ ॥ मामणमम्मादिदिठ त्ति का भावो, पारिणामिओ मावा ॥ ३ ॥ सम्मामिच्छादिदिठ त्ति को भावो, यओरममिओ भावो ॥ ४ ॥ असजदमम्माठि त्ति को मावो, उवममियो वा सदओ वा खओवममिओ वा भावो' ॥॥' पटा०, पु. ५, १० १९४ आरि।
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