________________
३६. जैनमाहित्यका इतिहाग
है । इस तरह इस गाथाके द्वारा ग्रन्थकारने गय नाम और उ
सूचित किया है ।
दूगरी गाथामें कहा है कि
वे पन्द्रह अधिकारी भिगन है। प्रतिबद्ध है, उन्हें कहूँगा । मे
आगेकी छह गायाजीके द्वारा हि पेज्जगविनगर, स्थितिविभक्ति, अनुभागविभक्ति, बन्धक अर्थात् बन्ध और मन पनि अति नीन गाथाएँ निवल है । नागक अधिकारी नार उपयोगनामक अगि मान, चतु स्थाननामक अधिकार मोह और राजननागर अधिकार पनि सूत्रगाभाग निवत्र है । वनमहामनानामा अभिपन्द्रह और दर्शनमोहक्षपणानामक अनिकारी पनि गाथाएँ है । भगमागम और पारित्रनिनागा अधिकार एक ही गाया है तथा नागोठउपनामना नामक aftaara गनाएँ है | माहिती भगवान नार, naari चार, अपवर्तनमे तीन, कृष्टिकरण गारह, कृष्टिगो गणनार, क्षीणमोहमे एक, नगहणी एक, रंगप्रकार मन मिलाकर नामिह में अट्ठाईस गाथाए है ।
पानामा अधिकार
मम्मी
और
माया उनमें जिग अधिकारी जितनी भूगावा
उस तरह आठ गाथाओगे प्रत्येक अपार गम्बन्धी गावाजवा विभाजन करके आचार्य गुणधरने आगी नार गावाभीगे गुनगानाओं और उनको भाग्यगाथाभोका निर्देश किया है। उनके पटना दो गाथाओंगे के पन्द्रह अर्यानि कारोका निर्देश किया है ।
इसके पश्चात् छह गाथाओं ने अद्वापरिमाणका कथन है । उसमें काल अल्पबहुत्वका कथन है । यथा - दर्शनोपयोगका जघन्यकाल सबसे कम है। इनमे विशेष अधिक चक्षुइन्द्रियावग्रहका जघन्यकाल है । इनमे विशेष अधिक श्रोत्रावग्रहका जघन्यकाल है । इसी तरह प्राण-अवग्रह, जिल्हा अवग्रह, मनोयोग, वचनयोग, काययोग, स्पर्शन - अवग्रह, अवायज्ञान, ईहाज्ञान, श्रुतज्ञान और श्वामोच्छ्रासका जघन्यकाल उत्तरोत्तर विशेष अधिक है । तद्भवस्य केवलीके केवलज्ञान और केवलदर्शका काल तथा सकपाय जीवके शुक्ललेग्याका काल श्वाच्छोछ्वाम के जघन्य कालसे विशेष अधिक है । इन तीनोके जघन्यकालमे एकत्ववितर्क भवीचार ध्यानका जधन्यकाल विशेष अधिक है । इसी तरह पृथक्त्ववितर्कसवीचार ध्यान, उपशमश्रेणिसे गिरे हुए सूक्ष्मसाम्परायिक, उपशमश्रेणिपर चढनेवाले सूक्ष्मसाम्परायिक, क्षपकश्रेणिगत सूक्ष्मसाम्परायिक, मान, क्रोध, माया, लोभ, क्षुद्रभवग्रहण, कृष्टिकरण, मक्रमण, अपवर्तन, उपशान्तकपाय, क्षीणमोह, उपशामक,