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____ कसायपाहुड : २९ अर्थात् प्रारम्भकी सम्बन्धनिर्देशक वारह गाथाएँ, अद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली १५ से २० तक छै गाथाएँ और सक्रमवृत्तिमम्बन्धी ३५ गाथायें किन्ही व्याख्याकारोके मतसे नागहस्तीकृत है। अत 'गाहासदे असीदे' इत्यादि प्रतिज्ञावाक्य नागहस्तीका है, गुणधरका नहीं। इन गाथाओके सम्बन्धमें दो बातें उल्लेखनीय है-एक तो प्रारम्भकी पहली गाथाको छोडकर 'गाहासदे असीदे' आदि सम्बन्धनिर्देशक गाथाओपर और अद्धापरिमाणका निर्देश करनेवाली छै गाथाओपर पतिवृपभके चूर्णिमूत्र नही है, दूसरी बात यह है कि सक्रमसे सम्बद्ध ३५ गाथाओमेसे तेरह गाथाएँ शिवशर्म रचित माने जाने वाली कर्मप्रकृतिमे भी पायी जाती है।
यद्यपि इन बातोमे उक्त गाथाओके नागहस्तीकृत होनेका समर्थन नहीं होता, तथापि ये बातें उक्त गाथाओकी स्थितिपर यत्किञ्चित् प्रकाश तो डालती ही है ।
किन्तु वीरसेन स्वामी उक्त व्याख्याकारोके मतमे सहमत नहीं है । उनका कहना है कि ऐसा माननेसे गुणधराचार्यकी अज्ञता घोतित होती है। किन्तु यह युक्ति कोई जोरदार नही है। क्योकि मोलह हजार पदप्रमाण कपायप्राभृतको एकसौ अस्सी गाथाओमें सक्षिप्त करनेवाले गुणवराचार्य स्वरचित गाथाओका अधिकारोमे विभाजन बतलानेके लिये ग्यारह गाथाएं जितना स्थान नही रोक सकते थे। फिर 'गाहासदे असीदे' आदि गाथाओकी रचनाशैलीमे भी उनके अन्यकर्तृक होनेका आभास होता है। उन गाथाओका रचयिता पन्द्रह अधिकारोमें विभक्त एकमी अस्सी गाथाओको किम अधिकारमे कितनी गाथाएं है, यह बतलानेकी प्रतिज्ञा करता है। इस प्रकारकी प्रतिज्ञा गुणधरकृत सभव नहीं है, उन्हें यदि प्रतिज्ञा करनी होती, तो सोलह हजार पदप्रमाण कसायपाहुडको एकमौ अस्सी गाथाओमे सक्षिप्त करता हूं, ऐसी प्रतिज्ञा करनी चाहिए थी। वे कसायपाहुडको उपस हृत करनेके लिये सन्नद्ध हुए थे, न कि स्वरचित गाथाओको स्वरचित अधिकारोमे विभाजित करनेके लिये ।
दूमरे 'मत्तेदा गहाओ', 'एदाओ सुत्तगाहाओं' आदि पद यह सूचित करते है कि इन गाथाओकी रचनासे पूर्व मूलगायाओ और भाष्यगाथाओकी रचना हो चुकी थी। अन्यथा अमुक अमुक सूत्रगाथा है, इस प्रकारका कथन सम्भव नही था। एक बात और भी द्रष्टव्य है । गाथा १३-१४ में गुणधराचार्यने अधिकारोका निर्देश किया है। उन गाथाओकी 'टीकाके आरम्भमें ही जयधवलाकारने यह शका उठाई है कि 'इम इस अधिकारमे इतनी इतनी गाथाए है' इस प्रकारके कथनसे ही पन्द्रह अधिकागेका ज्ञान हो जाता है। फिर इन गाथाओके द्वारा १५ अधिकागे
१ कमा० पा०, भा० १.५० १७८ ।