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उत्तरकालीन कर्म-साहित्य : ३९३ माधवचन्द्र विद्यके द्वारा रची गई है। ये माधवचन्द्र विद्य नेमिचन्द्रके समकालिक और उनके एक प्रमुख शिष्य थे। उनके द्वारा रचित भी कुछ गाथाएँ त्रिलोकसारमें है ऐसा उन्होने अपनी टीकाकी अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है। इन माधवचन्द्रने त्रि० सा० की प्रथम गाथाकी उत्यानिकामें लिखा है कि चार अनुयोग रूपी समुद्रोके पारगामी भगवान नेमिचन्द्र सद्धान्तदेव चामुण्डरायके वहानेसे समस्त विनेय जनोके प्रतिबोधनके लिये त्रिलोकसारकी रचना करते है ।
तथा त्रि० सा० की प्रथम गाथाका व्याख्यान करते हुए उन्होने उसे आचार्य नेमिचन्द्रके पक्ष में भी लगाया है और लिखा है कि बल अर्थात् चामुण्डराय और गोविन्द अर्थात् राचमल्लदेव (गगनरेश) ये दोनों नेमिचन्द्रको नमस्कार करते थे।
त्रिलोकसारकी एक प्राचीन प्रतिमें एक चित्र दिया है। जिसमें नेमिचन्द्राचार्य चामुण्डरायको उपदेश दे रहे है । ____ अत यह निर्विवाद है कि नेमिचन्द्र चामुण्डरायके समकालीन थे। उन्हीके निमित्तसे उन्होने अपने ग्रन्थोकी रचना की थी और अपने एक सबसे महान् ग्रन्थको चामुण्डरायके अपरनाम 'गोम्मट' से अभिहित किया था। समय
चामुण्डरायने अपना चामुण्डराय पुराण शक स० ९०० (वि०स० १०३५) में बनाकर समाप्त किया था । अत उनके लिए निर्मित गोम्मटसारका सुनिश्चित समय मुख्तार साहबने विक्रमको ११वी शताब्दी माना है, और श्री प्रेमीजीने विक्रमकी ग्यारहवी शताब्दीका पूर्वार्द्ध निश्चित किया है।
गोम्मटसार कर्मकाण्डमें चामुण्डरायके द्वारा निर्मित गोम्मट जिनकी मूर्तिका निर्देश है । अत यह निश्चित है कि गोम्मटसारकी समाप्ति गोम्मट मूर्तिकी स्थापनाके पश्चात् ही हुई है। किन्तु मूर्तिके स्थापना कालको लेकर इतिहासज्ञोमें
१ 'गुरुणेमिचन्द-सम्मद-कदिवय गाहा तहिं तहिं रइदा । माहवचदतिविज्जे
णिणमणुसरणिज्जमजेहिं ॥१॥-त्रि०सा० ।। २ . भगवान्नेमिचन्द्रसद्धान्तदेवश्चतुरनुयोगचतुरुदधिपारगश्चामुण्डरायप्रति - वोधनव्याजनाशेपविनेयजनप्रतिवोधनार्थ त्रिलोकसारनामान ग्रन्थमारचयन् ।'
-वि० सा० टी०, पृ० २।। ३ 'अथवा, णमसामि, कं० "विमलयरणेमित्रद' । विमलतर स चासो
नेमिचन्द्राचार्यश्च विमलतरनेमिचन्द्रस्त नमस्यामीति वल चामुण्डराय गा पृथ्वी विदति पालयतीति गोविन्दो रायमल्लदेव. ।-त्रि० सा० टी०, पृ० ३।